हिंदी साहित्य में राधा | Hindi Sahitya Me Radha
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.11 MB
कुल पष्ठ :
571
श्रेणी :
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No Information available about मित्तल द्वारका प्रसाद - Mittal Dwarka Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० 1] हिंग्दी साहिएप में रामा'
घारावत अविधिन स्प से सुम सर्वातियामी के ध्रति हो जाता तया मुम्द पुरुषोत्तम
में निवाम और बनय प्रेस हाना-यह नियुग्ग भवियोग का सलण महा
गया है। * भर्दित का लखग श्रीमद्धागवत मे इस प्रसार दिया गया है 1
सर पुरा परो धर्मों यो भक्तिरपोसनि।
अद्दुवुरपम्रतिहुता.. बयाधरमा. सम्प्रसीदति ॥. ई-रनई ॥
जर्वादू “मनुस्यो के लिए सवधे थम वहीं है, जिससे मगवाद श्रोहष्ण
में भक्ति हो--मक्ति भी ऐसी, जिससे जिसी प्रवार की वासना से हो सौर जो
नित्य निरन्तर बची रहे, ऐसी भवित से हुदप आतस्द रुइरूप परमात्मा बी उपलब्धि
करके हतहृत्य हो जाता है ।' भगवान वी सेवा वो छोड़कर ऐसे भक्त दिय जाने
पर भी सालोक्य, सा, सामीष्य, सारूप्य और मसायुम्य सौस तक को नहीं
लेन । धोमद्वागवत मे भक्ति को मुक्ति से बढ़कर बताया है क्योंकि जिस
अ्रवार में जढरातत खाय हुए अन को पचाता है उसी प्रदार यह कम-सस्वारों
के भण्डारस्प मिल शरोर वो तत्वान भग्स कर देती है।* श्रीमद्धागवत
थे एकादश स्वय के चौदहवें अध्याय में भक्ति को योग साधन, शॉन-विचान,
धर्मानुणन, जपनपाठ और तपन्त्याग से भी बढ़कर माना गया है । उनको कयम
है कि मकिक जाति दोप से मुक्त करन वाली है। सक्ति योग वे द्वारा
अ्मा वर्म-वासनाओ से मुक्त होकर मुझको हो प्राप्त हो जाता है, वयोति मैं
ही उनका वास्तविक स्वरुप हूँ ।* नवमू स्कण में मगवादु घोषणा करते हैं
कि बहू भक्ति के दारा ही जाने जाते, भक्तों के वश में होते और उठे
आथय देन हैं।* ज्ञान और भरत का सामब्जस्य भी भागवतकार ने स्यात-स्वान
पर किया है ।
शॉडिल्व भक्ति शूज मे भक्ति की ब्याव्यय दमा!
कि व्या इस प्रकार की गई है, “सा
बर्यात् ईश्वर ने प्रति सम्पूण अनुराग का नाम सबिते है ।
ईश्वर सप्दन्धी शान विशेष का नाम भक्ति मद्दीं है, बयोकि दोयो पुरुप को भी
शान होता है परन्तु उसमे प्रीति नहीं होती ।* डेप का प्रतिदूल सौर रस
दनएसससपययथलिएनणणन
१. स्रीमद्भागवत जैन, देन २
२. लीसद्धामवत स्कम्प केले, लब्याय १४,
दे. ीमद्भाववत १ र-प९ की तारक दो बेद
कि सर रू इंदे से इथ ४ सरीमदूमागवत १०२०-११
झांश्ल्य सक्ति-दुद २ ७ दांडिस्प भक्तिन्सुत्र हे
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