श्री उध्दव सन्देश: | Shri Uddhav Sandesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० उद्धवसन्देश सपरूप उसके मुख से पिता नन्द को छुड़ाकर गोपियों को ्ञानन्दि किया था ॥६४? 0८0 मूयोमिस्त्व॑ किले कुवलयापीड़दन्ताबघातें ग एतां निम्नोस्नतपरिसरां स्यन्दने बत्त मान मुश्वोतज्ञां मिहिरदुहितु धीर तीरास्तथ्रूमिं मन्दोक्रान्तां न खल पदबीं साधब शीलयन्ति 112४ दीका--दे धीर 1 रथे वत्त सानस्त्वं उत्तड्ों यमुनातीरान्तभ्मि मुख यवस्तां यूमिं कुचलयापीड़ दन्वावघाले निम्नोननतपरिसरों यत्त साधवों जना समन्द्ण दोपेणाश्यान्ता पदर्वी न शीलयन्ति 1६४ नु०-दे धीर रथ में बैठ हुए तुस कुबलयापीड नामक हाथी के दांती के आघात से ऊँ चीननीचीं यमुना की तीरभूमि को छोड़ देना । क्यों कि साघुजन मन्दजनों से आक्रान्त मार्ग का परित्याग कर देते हैं १५ मजा 0८% मुन्चासब्ये बिदगरुचिरं किड्चिद्स्मादुद्ब्चें राजत्तोरं नरसुमनसा राजिमिस्तीथराजम | _ थत्रापूर्व किंमपि कलयाव्चक्रतुमत्प्रभावादू _ आाभीराणां कुलमपि तथा गान्दिनीनन्द्नोइपि 1? ६1 रॉका-दसबच्ये दृष्तिये झस्माद स्थल्ात उद्ऊचं उत्तरदिग्वर्सिसं शंकर घाठ इति प्रसिद्ध तीथराजं सुब्च यत्र तीथराजे वरुराोकिं मदेश्वर्य 1 सॉबामिलापचतामासीरायां कुर्त एुरब यास्दिमीनस्ट्नो &पि मधरा ममवसमयत्रे मत्मसावातू किमपि कलयों चक्रतुः 1? ६1




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