संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास भाग 1 | Sanskrit Vyakaran Shastra Ka Itihas Bhag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११) श्रनुमान है कि यह मांग भी न्यूनातिन्यून २५.० पूछें से श्रघिक का होगा । इस में किन क्नि परिशिष्टों का सन्नियेश किया लाएगा, यहें श्रस्त के प्रष्ठ श८४ पर हमने दे दिया है। इस प्रकार यदद “सत्वृ त व्याकरणु-शास्त्र का इतिहास ग्रस्थ ६ १५,+४२५+२५ ०० १२६० लगमग १३०० पूर्ण के तीन मार्गों में पूर्ण होगा । केवल संस्कृत व्याकरण शास्त्र के इतिहास की इतनी विपुल सामग्री का सकलन (वह मी सूत्ररूप सक्तिप्त मापा में ) सतार की किसी भी मांधा के किसी भी लेखक ने प्रस्तुत नहीं किया । इस का प्रयम श्रेय भारत के ही एक लेसक श्द्ौर भारत की राष्ट्रमापा (हिन्दी) को ही है । उत्तर प्रदेश राउय द्वारा पुरस्कार मैंने सस्कत वाद्मय, विशेषतया बेद श्रीर व्याकरण के प्रिपय में जितना भी शोध कार्य किया है, वह सम्पूशोत्मना मौलिक है । मैंने जो भी ग्रन्थ लिये झयवा विशिष्ट शोघपुर् निबन्घ लिखे, वे सभी श्रपने विषय के प्रथम और मौलिक हैं । इसलिए स० २०१८ से पूर्व प्रकाशित मेरे सभी ग्रन्थों पर उत्तर प्रदेश राज्य ने पुरस्कार प्रदान किया । जो इस प्रकार है-- #-संस्कत व्याकरण शास्त्र का इतिहास पर ६००-०० सन्‌ १९४१ में २-पैदिक स्वर-मीमासा पर ७००-०० सन्‌ १९४६ में । ३-येदिक-छुन्दोमी मांसा पर ७५००-०० सन्‌ १९६१ में । राजस्थान राज्य द्वारा पुरस्कार राजस्थान राज्य के सस्कृत शिक्षा विभाग ने इसी वर्ष सस्कृत वाड्मय के वेद श्रौर व्याकरण विषयक श्र यावत्‌ किए शोध कार्य पर मुझे ३०००) तीन सहस सपयों का प्रयप पुरस्कार प्रदान किया है । इंस गुणुग्राहिता के लिये सस्कत शिक्षा विमाग राजस्थान ( जयपुर ) के सचालक श्रौर पुरस्कार निर्णायक समिति के सदस्यों का मै बहुत आ्ामारी हूँ । बिचिघ्न-सयोग--इस पुरस्कार परम्परा मे यह भी एक विचित्र सयोग है कि उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा जब मुझे तीन पुरस्कार प्राप्त हुए, तब्र समानमीय श्री डा० सम्पूर्णीनन्दजी उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री थे श्रौर राजस्थान राज्य से जन पुरस्कार प्रात हुश्ा, तब श्राप इस वीरवू-यूमि ( राजस्थान ) को राज्यपाल रूप से अलइकृत कर रहे हैं । इसे ही शाख्रों में दैवी-गति कहा है ।




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