कल्पित इतिहास से सावधान | Kalpet Itihas Se Savadhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11 हाथ में डण्डा पकड़ा । डण्डे को देखकर सिखारो डरने लगे । इस भाति इन्होने धर्म को कलेकित कर डाला ६ दे£ 3.६ २.६ श६४६ जी पालीताचार्य सौ देश मे पधारे । तब साधघुओ का पत्ति आचार देखकर उन्हें समझाया । समझे । ८६ 22६ 22६ २६ २०६ 35६ इन्होंने ( शिथिलाचारियों ने ) अपनी पुजा के लिये चॉतरा, चेत्य, पगल्या, म्दिर, वेहरा बधघवाये । अलग-अलग गच्छ बधी करी । धर्स के ढोंगी बने । डे ६ 30६ परन्तु मिथ्यात्व के उदय न २८६ 32६ ६ जाचायें, ऋषि, सुनि, आदि शब्दो को सोडकर विजय, सुरि; प्यास, थंति जादिं शब्दों को जोडने लगे । 2६ 32६ 30६ स्थानकपथी भ्राचायें हस्तीमलजी ने उक्त ६ु स्साहस पूर्ण झक्षेप इवेताम्बर भूतिपूजक जेना'वायों श्राधदि पर किया है । इसके विषय मे इवेताम्बर मूतिपूजक समाज को जो भी उचित हो करना शाहिए एव जैन समाज की एकता के प्रेमी ( 1 ) “जेन इतिहास समिति” ([ लाल भवन, 'चोडा रास्ता, जयपुर-४३ ] पर घिरोघ सूचक पत्र भी लिखना चाहिए । इष्टी श्राचायं हारा रचित छूसरी पुस्तक “जनधमं का मौलिक इतिहास भ्ोर ९” है, जिसमे भी ऐसी ही साम्प्रदायिक कदुता उभारने वाली भ्रौर शास्त्र निरपेक्ष मनघडत बातें भरी पड़ी हैं । इनके इतिहास की कल्पित श्रौर मूठ कुछ बातें प्रस्तुत हैं । सगर चनत्रवर्ती के ६० हजार पु्नो की झष्टापदजी तीथेंरक्षा मे मौत हुई थी, इस पर ने लिखते हैं कि-- र६ ६ २६ संभव हे, पुराण से शतारवमेधी की कामना करने थासे सपर के थज्ञारव को इन्द्र द्वारा पाताल लोक से कपिलमुनि के भाश बाधघने




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