अथार्ववेद्स्य गोपधब्रह्मनाम | Atharvavedasya Gopathbramhanam

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Atharvavedasya Gopathbramhanam by चेमकरणदास त्रिवेदी - Chemkarandas Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ गे पथव्राह्मण का विषय खूचीपत्र पूर्व भाग ॥ कणिडका विषय ११--संवत्सर के ज्ञान को सहिमा १२--संवत्खर की छुन्द से उपमा और महिमा १३--संवत्सर और महद्दाघत १७--संचत्सर और महददावत यज्ञ के विपय में प्रश्नोत्तर तथा ८ धर ६... तथा दे इज रा सधा ० सा पक १८--संचत्सर बड़ा गरुड़ विषुवान्‌ झात्मा और दोनों झधघ संचत्सर दे पच्त हि था गम १&--चिछुवान_ से संचत्सर के बारह महीने २०--ज्योतिष्टोम छादि यन्नौ के विपय में प्रश्नीत्तर २१--संवत्सर का अझतिरात्र झादिकों से सम्बन्ध. - शक २२--. . तथा तथा रेदे--झभिपषव और पृष्व्य की व्युत्पसि और दुसरे यज्ञ र४-प्रेदि कोशाम्वेय कौखुर बिन्दु और उद्दालक झारुण से संव- त्सर झौर यज्ञीय दिनों के दिघय में प्रश्नोत्तर प्रपाठक ४ ॥। १--संवचत्सर से झमिझव का सम्बन्ध मम र--यज्ञों में गाघ प्रतिष्ठा झौर तीर्थ ३-मजुष्य शरीर के ट्रट्टान्त से संवत्सर यज्ञ का छ....... --- या न सा ५--मजुष्य शरीर के दृ्टान्त से संवत्सर झर्थात्‌ वर्ष का चृत्तान्त ६--संवत्सर यज्ञ मे विषुवान्‌ के दोनों ओर यज्ञ की समता ९ ७-पन्‍्द्रद प्रकार के यज्नों का क्रम जिन में राजसूय वाजपेय अश्वसेघ पर्पमेघ झादि सश्मिलित हैं शक -उप्रजापति की कथा जिस ने बहुत यज्ौ को करके आत्मिक यज्ञ से झत्यन्त सुख पाया &-संवचत्सर यज्ञ में झावश्यक करमें। का विधान १०--सहस्तर संवत्सर यज्ञ और उसके स्थानापन्न चिश्वजित्‌ यज्ञ के विषय में कथा पुष्ठ २३७ २३७ २३८ २४० २७४३ २४२ न्छ३ पे न रद न्श्द्9 २७१ नर ग््७्3 २८०




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