राठौड़ वंश री विगत एवं राठौड़ा री वंशावली | Rathore Vansh Ri Vigat And Rathora Ri Vanshawali
श्रेणी : समकालीन / Contemporary
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.05 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३3
. देवी वस्तुत: वह महाशंक्ति हू “जिसके - श्रंतगंत . श्रर्नि तथा. सोम-नामक, दो.
' तत्त्व संयक्त होकर सुयं-नामक तृतीय, तत्त्व को जन्म देते हैं; ' भ्रत:.. इसमें कोई.
:. ध्रांइंचयें नहीं कि इंस महाशक्ति को अंपनी कुलंदेवी मानने. .वाले राष्ट्रों में से.
विभिन्न, राष्ट्र श्रपने को: क्रमश: अग्नि, सोम श्र सूर्य के पुत्र कहने लगे श्रौर' _
_ साथ ही यह तीनों प्रकार के लोग श्रपने को परमात्मा-नामक राजा के पुत्र मानने -
के कारण स्वयं को राजपुत्न भी कहने लगे । वस्तुत: यह राजपुन्न कोई नया दाब्द
.. नहीं है। क्योंकि संभवत: इन्हीं राजपुत्रों की श्रादिमाता होने के कारण ऋग्वेद
की शअदिति-नामकं महाशक्ति को राजपुत्रा कहा गया है. । .
इस प्रकार यह देखने से स्पष्ट हो जांता है कि राठौड़ों ही को नहीं; श्रपितु
':' सभी राजपुतों की उत्पत्ति के विषय में जो दन्तकथांएं चली श्रा रही हैं उनके
पीछे एक दाशनिक प्रतोकवाद है जो श्राघुनिक जातिप्रथा से. ऊपर उठ कर
भारतीय संस्कृति की'उस ऊंचाई तक पंहुँचता है जो .वागम्भुणी सुक्त के शब्दों
-... में “राष्ट्र की समष्टिगत शक्ति है' श्रौर जिसके पुनरुद्धार से भारत-राष्ट् को पुन
संगठित किया जा संकता है । इसका श्रभिप्राय यह है कि सूर्य, चन्द्र पर
' . झाधारित वंशों को .कंल्पना वस्तुत: किसी मानववंश की द्योतक नहीं है । इसकी ..
पुष्टि इस बात से होती है कि इन वंश्ों की सभीं जातियां, सभी स्थानों पर एक
_. : गोत्र की नहीं है । उदाहरण के लिए राठोड़ों को. ही ले सकते हैं । राठौड़ लोग
गौतम श्रोर कश्यप-गोत्र के तो प्रायं: मिलते हैं, परन्तु कहीं-कहीं भारद्वाज-गोन्र
. के भी सुने गए हैं । इन राठोड़ों का संम्बन्घ यदि दक्षिण. के रेड्टियों .
उत्तरप्रदेश या राजस्थान के 'राठियों से भी जोड़ा जाय, तब तो इन तीन गोत्रों
से ही नहीं, श्रपितु राजपूत कही जाने वाली जातियों से भी बाहर जाना पड़ेगा । *
_ झस्तु, जातिप्रथा के उत्पत्ति श्रौर विकास के.विषय में सीमांसा. करने के.
' लिए यहां उपयुक्त स्थान नहीं है, परन्तु इतना कह देना श्रनुचित न. होगा. कि;
अब तक इस देश .की जातिप्रथा के विषय में जो चर्चा हुई है उस पर इसी
' प्रकार से गहराई के. साथ पुर्विचार करने की श्रावश्यकता है । इसके बिना न .
'....तो जातिप्रथां को हीं समझता जा सकता है श्रौर.न इसको मिटाने में ही सफलता
_... मिल सकती. है. ।' जातिप्रथा पर लिखंने वाले यह मान कर चले हैं. कि भारत- .
राष्ट्र कभी एक नहीं था श्रौर न कभी इसमें राष्ट्रीयता थी श्रौर न.संभवतः इस. .
महाद्वीपकल्प देवा में राष्टीयता सम्भव ही है 1. इस भ्रामक धारणा को . लेकर
_ चलने. से ही. जातिप्रथा को मिटाने के लिए जो प्रयत्न हुए वे स्वयं नई जातियों ... . -
: , ', कों बनां गए। श्रत: प्रथम तो राष्ट्रीयता-विषयक शभ्रान्ति को निवारण करने. के.
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harishrathore158
at 2019-06-12 20:16:02