चिकित्सा सिधांत | Chikitsa Sidhant

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Chikitsa Sidhant by एस. जी. मुकर्जी - S. G. Mukarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ भूमिका पं अर्थात्‌ ( चिकित्सक यननेके लिये ) “किसीफे हारा पीसी गई किसी दृचाकी जड़ किसी रोगीको दे देना चाहिए; जो होना होगा; होगा 17 कर विचार करनेकी वात है कि किस एलॉपेथिक विधानके अनुसार, अथवा किस प्रचलित आयुर्वेदिक प्रशालीकि अनुसार; श्रथया किस यूनानी हिकमतकी कितायके अनुसार, आोपधोंकी परीक्षा स्वस्थ व्यक्तियोपर की जाता आवश्यक है? अथवा सच्श बिघानके 'ममिरिक्त किस श्सटश विधानके '्हसार रोगीकों छौपष देनेके पूर्व यह वियार करना 'ावश्यक है. कि उस थछौपघरसे अथवा छंपघनमिश्रणसे स्वग्थ व्यक्ति योसि किस प्रकार- का लद णुसमूद्द (छद्रिम रोग) उत्पन्न हो सकता है. ? वास्तवमे तो संदश विधानके अविश्क्ति संसारवा कोई चिफित्सा-चिधान स्वस्थ मानव शरीरमें परीद्षार्थ '्लौपघ-प्रयोगकी विधिकों प्रतिछ्टित नहीं करता । यदि 'अकस्मात्‌ 'छथवा जानवूभकर कोई व्यविति फिसी ऐसी श्यीपघकों खा. लेता है, छेथवा, उसे भूल कर कोई ऐषी श्ौपघ खिला दी जाती है, जिसकी आथमिक कियाहारा उप मारक लक्षण उत्पन्न दो जाते हैं, तो ऐसे लक्षण ही असदश विधान उस छौपघकी विप-क्रियाको जाननेके लिये आधार बन जाति हैं, 'यऔर त्तत दो उस ऑपधकी मात्राके अयोगकि संघन्धम नियमादि बना दिए जाते हैं। परन्तु यदि पथ उम्र मारक स हो, तय सो उसके दु्परिणामोका पता लगानेफ्ा कोई साधन असदश चिकित्सा चिधानमे नदी पाया जाता । यदि पक श्रीपघ देनेकी प्रथा दो, तो कदाचित्‌ ऐसा अवसर भी शाप दो सकता दै ; परन्तु ्यसदश विधानके '्यनुसार नेक श्यौप- घोंको मिलाकर ही प्रयोग करते हैं। फिर मसला यह ज्ञान होसा पैसे संभव हो सकता है. कि किस आऔपधरे कसा लक्एसमृदद




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