रीतिकाल के काव्यों में प्रयुक्त अरबी - फारसी शब्दों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन | Ritikal Kay Kavayan May Praukt Arbi Farsi Shabd Ka bhasha Vagyanik Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 थे बस्तर तो भारत से बाहर जाती थीं पर इनक बढ़ते में अरब याते भारववासियोँ के उनको जरूत का बस्पुस देते थे जैसे ५५ड़े आदि । नो वस्तुएं यहाँ थी जाती थीं उनमें हिजी तीसरी शताब्दों र0नवीं शभब्दी लगभग में पिन्थ में सोने के सिक्कों फी भारत में बहुत माँग थी नह आशर्फी ५ हते पन्णे की अंगठी थिस्त्र से मगा - साधारण पत्थर शिसपन नाव दंग था भिज् से रासब रु म से छमी पड़े समर पोस्तीन और तलवारँ आती थीं । फारस से गुलाबगल यो प्रसिदूध था भारत में आता था बसेर ४ देवल सिंध % बन्दरगाह मेँ थज़र आती थी । फोरमैंड ये अरब से घोड़े आते थे अरब से या बाहर से आनेवाली इनमे वस्तुओं और घोड़ों थे. नाम अरबी ईरानी या फारसी होते थे धीस्घीर अरबी नानाँ ने देशी नाभाँ को हटा दिया । सातवीं शती थे. पूर्वार्ष थे बाग ने रंगों थे आधार पर घोड़ों ने देशी नाभोँ न ही उल्लेख पिया है । जैसे शोग इनान इवेत पिंजर हरित तिस्तिर कल्याथ आदि । चीर्धारे घोड़ों के अरबी नाथ बाजार मे भर गये और देशी नाम हट गये । शोधत पहिचम भारत मेँ यहाँ तं/ कि बारहवीं शती मैँ हेमथन्द्र ने अपने शभिधान थिन्तामणि लामफ कोश मै थोड़ों भरबी और देशी नाम और संस्यूत नाभ साथ-साथ दिये हैं । घोड़ों के पे साथ देखे था रा+ते जैसे -- तुब्नार +.... तुधार देश पे थोड़े तुभार भष्येषिया मेँ शकों के रुक कबीले और उनके मु्त निवास स्थान की संज्ञा थी । यहाँ से कुधाण और गुप्त काल मैं आने वाले धोड़े तुभार फहलाते थे । बॉँक बाँफे टर मुंहजोर । तायन . फा6 ताजियाना चाबुक । रथवाह स्थ के घोड़े । पैगह .. घुड़शाप ।




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