हिन्दी स्वराज्य | Hindi Swarajya
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.04 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
भी एक यंत्र ही है, छोटी दात-कुरेदनी' भी यंत्र है। मेरा
यंत्रोंक लिए नहीं है, वट्कि यंत्रोंके पीछे जो पागछूपन आाज चलू रहा है
उसकेरदिए है। भाज तो जिन्हें मेहनत चचानेवाले यंत्र कहते हैं, उनके
पीछे लोग पागल हो गये हैं। उनसे मेहनत जरूर बचती है, लेकिन
लाखों लोग बेकार होकर भूखों मरते हुए रास्तों पर भटकते हैं। समय
भर श्रमकी वचत तो मैं भी चाहता हूं, परन्तु वह किसी खास वर्गकी
नहीं, बल्कि सारी. मानव-जातिकी होनी चाहिये। कुछ गिने-गिनाये
लोगोंके पास संपत्ति जमा हो ऐसा नहीं, वल्कि सबके पास जमा हो ऐसा
में चाहता हूं। आज तो करोड़ोंकी गरदन पर कुछ लोगोंके सवार हो
जानेमें यंत्र मददगार हो रहे हैं। यंत्रोंक॑ उपयोगके पीछे जो प्रेरक कारण
है बह श्रमकी वचत नहीं है, बल्कि धनका लोभ है। आजकी इस
चालू भर्थ-व्यवस्थाके ख़िलाफ़ मैं अपनी तमाम ताक़त लगाकर युद्ध चला
रहा हूं।'
'रामचन्द्रनूने आतुरतासे पूछा : ' तव तो, वापुजी, आपका झगड़ा
यंत्रों ख़िलाफ़ नहीं, वल्कि गाज यंत्रोंका जो बुरा उपयोग हो रहा है
उसके ख़िलाफ़ है? '
“जरा भी आनाकानी किये विना मैं कहता हूं कि ' हां” । लेकिन
में इतना जोड़ना चाहता हूं कि सबसे पहले यंत्रोंकी खोज और विज्ञान
लोभकें साधन नहीं रहनें चाहिये । फिर मजदुरोंसे उनकी ताक़तसे ज्यादा
काम नहीं लिया जायगा. गबौर यंत्र रुकावट वननेके बजाय मददगार
हो जायेंगे। मेरा उद्देयय तमाम यंत्रोंका नादा करनेका नहीं है, वल्कि
उनकी हद वांधनेका है।'
रामचन्द्रनूने कहा : इस दलीलकों भागे बढ़ायें तो उसका मतलव
यह होता है कि भौतिक थाक्तिसे चलनेवाले बौर भारी पेचीदा तमाम
यंत्रोंका त्याग करना चाहिये 1
गांधीजीने मंजूर करते हुए कहा : ' त्याग करना भी पड़े । लेकिन
एक वात में साफ करना चाहूंगा। हम जो कुछ करें उसमें मुख्य विचार
इन्सानके भलेका होना चाहिये। ऐसे यंत्र नहीं होने चाहिये जो काम
१. खरका। २. मक़सद । ३. दुनियवी ।
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