चन्द्रगुप्त मौर्य्य | Chandragupt Maurya

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Chandragupt Maurya by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५. अन्तर में चित्रकूट ( चित्तौर ) का पवित्र दुर्ग बनवाया; जो भारत के में एक अपूर्व वस्तु है । गृप्तवंछियों ने जब अवन्ती मौय्य॑ लोगो से ले ली, उसके बाद वीर मौर्य्यों के उद्योग से कई नगरी बसाई गई और कितनी ही उन लोगो ने दूसरे राजाओ से ले ली । अबू दगिरि के प्राचीन भूभाग पर उन्हीं का अधिकार था । उस समय राजस्थान के सब अच्छे-अच्छे प्राय मौर्य्य-राजगण« के अधिकार में थें । विक्रमीय सवत्‌ू ७८० तक मौर्य्यों की प्रतिष्ठा राजस्थान में थी भौर उस अन्तिम प्रतिष्ठा को तो भारतवासी कभी न भूलेगे जो चित्तौरपति मौय्य॑-नरनाथ मान- सिह ने खलीफा वलीद को राजस्थान से विताडित करके प्राप्त की थी । सानमौय्य के बनवाये हुए मानसरोंवर से एक शिलालेख है, जिसमे लिखा हू कि--'महेश्वर को भोज नाम का पुत्र हुआ था, जो धारा और मालव का अधीश्वर था, उसी से मानमौर्य्य॑ हुए ।” इतिहास मे ७८४ सवत्‌ में वाप्पारावल का चित्तौर अधिकार करना लिखा है, तो इससे सदेह नहीं रह जाता कि यही मानमौय्य॑ वाप्पारावल के द्वारा प्रवब्चित हुआ । महाराज मान प्रसिद्ध वाप्पादित्य के मातुल थे । बाप्पादित्य ने सांगेन्द्र से भाग कर मानमौय्य के यहाँ आश्रय लिया, उनके यहाँ सामन्त- रूप से रहने लगे । धीरे-धीरे उनका अधिकार सब सामन्तों से वढा; तब सब सामन्त उनसे डाह करने लगे । किन्तु बाप्पादित्य की सहायता से मानमौय्य॑ ने यवनो को फिर भी पराजित किया । पर उन्ही वाप्पादित्य की दोधारी तलवार मानमौय्यें के लिए कालभुजगिनी और मौय्य॑-कूल के लिए तो मानो प्रलय-समुद्र की एक बडी लहर हुई । मान बाप्पादित्य के हाथ से मारे गये और राजस्थान मे मौय्य॑-कूल का अब कोई राजा न रहा । यह घटना विक्रमीय सवबत्‌ ७८४ की है । कोटा के कण्वाश्नम के शिवमन्दिर मे एक शिलालेख संवत्‌ ७९५ का पाया गया है। उससे माछम होता है कि आठवीं शताब्दी




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