चेतन | Chetan

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Chetan by उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ के # उपेस्द्रनाथ श्रदक मदारी का खेल खत्म हो गया था । भीड़ के ऊपर से पैसों की थाली वाला हाथ उसने चेतन के श्रागे कर दिया | लाचारी से एक हूँ कर के चेतन बहाँ से चल पड़ा श्रौर ताँगे की पिछली सीट पर जा बेठा । सुल्कराज ने सड़क पर ही से पूछा क्यों १ चेतन जैसे विबशता से सिफ़ सुस्करा कर रह गया । मुल्कराज बोला मैंने तो कहा था शादी.... चेतन ने बात काट कर कहा इस सोटी-सुठल्ली लड़की से ? हरगिज नहीं | ? कक इसी वर्ष स्थानीय कॉलेज से चेतन ने बी० ए.० की परीक्षा दी थी द्‌ और उसकी माँ को उसके विवाह की चिन्ता लग गयी थी लाहौर की पढ़ाई का खर्च सह सकने की शक्ति उनमें नहीं थी । इतना भी न जाने कैसे हो गया पिता का श्रपना ही ख़च सुश्किल से चलता था । माँ ने जैसे-तैसे अब तक चेतन की शिक्षा का प्रबन्ध किया था । पर उसे -लाहौर मेजना तो उस के बस के भी बाहर था । गहने थे पर कितने ? श्र वे भी न जाने कहाँ-कहाँ गिरवी रखे हुए थे इन्हीं कारणों से झब बह चाहती थी कि उसका यह बेटा जब इतना पढ़-लिख गया है तो उसका कर्तव्य है कि कहीं नौकरी करे घर-बार बसाये श्र इस प्रकार शीघ ही -नौकरी से रिटायर होने वाले झपने पिता श्रौर उहस्थी के भंभटों से रिटायर होने बाली माँ को सहारा दे । किन्तु चेतन की उच्चाकांक्षा इस तरह सीमित होने को तैयार न थी । -कारागार के सीखबचों में बन्द व्यक्ति के झ्ररमानों की भाँति वह उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाती थी । यद्यपि परीक्षा-फल निकलने से कई दिम पहले उसने अपने ही स्कूल में नौकरी कर ली थी श्रौर जिन दर्जों की बेंचों पर बैठ कर झध्यापकों की सुनी थीं उन्हीं में अध्यापक की कुर्सी को




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