प्रेमचंद रचनावली खंड 13 | Premchand Rachanavali Vol. 13
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32.99 MB
कुल पष्ठ :
417
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 प्रेमचंद रचनावली-13 अवश्य मिलेगा । रातों को उसके कराहने की करुण ध्वनि सुनाई देती थी । उसकी दीनता पर देखने वालों की आंखों से आंसू निकल पड़ते थे। इस प्रकार कई महीने बीत गए। एक दिन मन्नू गली में बैठा हुआ था इतने में लड़कों का शोर सुनाई दिया। उसने देखा एक बुट़िया नंगे सिर नंगे बदन एक चिधड़ा कमर में लपेटे सिर के बाल छिंटकाए भुतनियों की तरह चली आ रही है और कई लड़के उसके पीछे पत्थर फेंकते पगली नानी पगली नानी की हांक लगाते तालियां बजाते चले आ रहे हैं। वह रह-रहकर रुक जाती है और लड़कों से कहती है- मैं पगली नहीं हूं मुझे पगली क्यों कहते हो ? आखिर बुढ़िया जमीन पर बैठ गई और बोली - वताओ मुझे पगली क्यों कहते हो उसे लड़कों पर लेशमात्र भी क्रोध न आता था । वह न रोती थी न हंसता थी । पत्थर लग भी जाते तो चुप हो जाती थी। एक लड़के ने कहा-तू कपड़े क्यों नहीं पहनती तू पागल नहीं तो और क्या है ? बुढ़िया-कपड़े जाड़े में सर्दी से बचने के लिए पहने जाते हैं। आजकल तो गर्मी है । लड़का शर्म नहीं आती ? बुढिया शर्म किसे कहते हैं वेटा इतने साधू-संन्यासी नंगे रहते हैं उनको पत्थर से क्यों नहीं मारते ? लड़का-वे तो मर्द हैं। बुद़िया-क्या शर्म औरतों ही के लिए है मर्दों को शर्म नहीं आनी चाहिए ? लड़का-तुझे जो कोई जो कुछ दे देता है उसे तू खा लेती है । तू पागल नहीं तो और कया है? वुढ़िया-इरमें पागलपन की क्या बात है बेटा ? भूख लगती है पेट भर लती हूं । लड़का-तुझे कुछ विचार नहीं है। किसी के हाथ की चीज खाते घिन नहीं आती ? बुट्या-घिन किसे कहते हैं बेटा मैं भूल गई। लड़का-सभी को घिन आती है क्या बता दूं घिम किसे कहते हैं ? दूसरा लड़का-तू पैसे क्यों हाथ से फेंक देती है ? कोई कपड़े देता है तो क्यों छोड़कर चल देती है ? पगली नहीं तो और क्या है ? बुढ़िया-पैसे कपड़े लेकर क्या करूं बेटा ? लड़का-और लोग क्या करते हैं ? पैसे-रुपये का लालच सभी को होता है। बुढ़िया-लालच किसे कहते हैं बेटा मैं भूल गई लड़का-इसी से तो तुझे पगली नानी कहते हैं । तुझे न लोभ है न घिन है न विचार है न लाज है। ऐसों ही को पागल कहते हैं। बुढ़िया--तो यही कहो मैं पगली हूं । लड़का-तुझे क्रोध क्यों नहीं आता ? बुढ़िया-क्या जाने बेटा मुझे तो क्रोध नहीं आता । क्या किसी को क्रोध भी आता है ? मैं तो भूल गई । कई लड़कों ने इस पर पगली पगली का शोर मचाया और बुढ़िया उसी तरह शांत भाव से आगे चली । जब वह निकट आई तो मननू उसे पहचान गया । यह तो मेरी वुधिया
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