प्रेमचंद रचनावली खंड 19 | Premchand Rachanavali Vol. 19

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प्रेमचंद - Premchand

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 प्रेमचंद रचनावली-19 वह अंग्रेजी नाविल भेज दीजिए । अगर हो सका तो फ़रमाइशे तामील कर दूँगा वर्ना मजबूरी है। तबादला फ़िलहाल गैर-मुमकिन है। दीगर क्या अर्ज करूँ। खाकसार धनपतराय । केश हमीरपुर 18 मार्च 1910 बरादरम आज दस रुपये मिले । मशकूर हूँ। मैं दो दिन से यहाँ आया हूँ और वहुत चाहता था कि एक दिन के लिए कानपुर चला आऊँ क्योंकि अब रेल खुल गयी है मगर 18 और 19-20 तीन दिनों में मुझे निस्फ़ दर्जन मदरसे देखने हैं और महोवा पहुँचना है। इस वजह से मजबूर हूँ। इन्हीं परीशानियों के बाइस इस हफ़्ते में कुछ न लिख सका। मुआफ़ कीजिएगा। अब महोबा पहुँचकर लिखूँगा। वाक़ी खैरियत है। जी चाहता है कि नये नये वाक़यात पर कुछ नोटिस लिखा करूँ। मगर वाक़यात का इल्म मुझे उस वक़्त होता है जब वह अख़बारात में निकल चुकते हैं और उनके देर अज वक़्त हो जाने का खौफ़ रहता है। बहरहाल मैंने मुसम्मम इरादा किया है कि जुलाई और अगस्त में रुखसत लूं और अपनी अख़बारी क़ावलियत को आजमाऊं। आइन्दा जैसा ईश्वर चाहें । आपका धनपत राय । के के कुल पहाड़ 13 मई 1910 भाईजान तसलीम । कई दिन हुए आपका ख़त आया । जैसा आप फ़मति हैं वैसा ही होगा । मेरे किस्से अब कहीं न जायेंगे। मुआविजे का जिक्र मुझे खुद मकरूह मालूम होता है मगर वात यह है कि छोटे क्रिस्सों के गढ़ने में दिमागी उलझन बहुत ज्यादा होती है और तावक़्ते कि तवीयत को यह झक न हो कि इस से कुछ मुवलिग वसूल होंगे बह इस काम की तरफ़ रुजू नहीं होती। हक मानिये यही वात है। नवाव राय नो ग़ालिबन कुछ दिनों के लिये जहान से गये । दौवारा याददेहानी हुई है कि तुमने मुआहिदे में गो अख़बारी मजामीन नहीं लिखे मगर इसका मंशा हर क्रिस्म की तहरीर से था। गोया में कोई मजमून ख्याह किसी मजमून पर--हाथी दाँत पर ही क्यों न हो-लिखेूँ मुझे पहले वह जनाव फ़ैज-मआव कलक्टर साहब वहादुर की ख़िंदमत में पेश करना पड़ेंगा। और मुझे छटे-छमासे लिखना नहीं यह तो मेरा रोज का धन्धा ठहरा। हर माह एक मज़मून साहिवे वाला की खिदमत में पहुँचेगा तो वह समझेंगे मैं अपने फ़राइज़े सरकारी में ख़यानत करता हूँ। और क्राम मेरे सर थोपा जायगा। इसलिए कुछ दिनों क॑ लिए नवाब राय मरहूम हुए। उनके जॉनशीन कोई और साहव होंगे। आप मेरा मजमून कितावत कराने क॑ वाद मुंशी चिराग अली को दे दिया करेंगे । मुआवजे की निस्वत जो आपने फ़रमाया वह मुझे मंजूर है। अगर मजमून इतना बड़ा हो कि एक नम्बर में निकल जाय तो ख़म्स और अगर एक से ज्यादा नम्बरों में निकले-दो या तीन में-तो इसका अलमुज़ाइफ़ । यह मैं अब फिर कहता हूँ और पहले भी कह चुका था मगर किसी वजह से वह रिमार्क आपने नजरअन्दाज़ कर दिया कि यह मुवल्लिगात मैं अपने तसर्स्फ़




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