प्रेमचंद रचनावली खंड 5 | Premchand Rachanavali Vol. 5
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41.54 MB
कुल पष्ठ :
505
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 प्रेमचंद रचनावली-5 पांच नाटक उस वक्त पास होता है जब रसिक-समाज उसे पंसद कर लेता है। बरात का नाटक उस वक्त पास होता है जब राह चलते आदमी उसे पंसद कर लेते हैं। नाटक की परीक्षा चार- पांच घंटे तक होती रहती है बरात की परीक्षा के लिए केवल इतने ही मिनटों का समय होता है। सारी सजावट सारी दौड़-धूप और तैयारी का निबटारा पांच मिनटों में हो जाता है। अगर सबके मुंह से वाह-वाह निकल गया तो तमाशा पास नहीं फेल रुपया मेहनत फिक्र सब अकारथ। दयानाथ का तमाशा पास हो गया। शहर में वह तीसरे दर्ज में आता गांव में अव्वल दर्जे में आया। कोई बाजों की धों-घधों पों-पों सुनकर मस्त हो रहा था कोई मोटर को आंखें फाड़-फाड़कर देख रहा था। कुछ लोग फुलवारियों के तख्त देखकर लोट-लोट जाते थे। आतिशबाजी ही मनोरंजन का केंद्र थी। हवाइयां जब सनन से ऊपर जातीं और आकाश में लाल हरे नीले पीले कुमकुमे-से बिखर जाते जब चर्खियां छूटतीं और उनमें नाचते हुए मोर निकल आते तो लोग मंत्रमुग्ध-से हो जाते थे। वाह कया कारीगरी है जालपा के लिए इन चीजों में लेशमात्र भी आकर्षण न था। हां वह वर को एक आंख देखना चाहती थी वह भी सबसे छिपाकर पर उस भीड़-भाड़ में ऐसा अवसर कहां। द्वारचार के समय उसकी सखियां उसे छत पर खींच ले गईं और उसने रमानाथ को देखा। उसका सारा विराग सारी उदासीनता सारी मनोव्यथा मानो छू-मंतर हो गई थी। मुंह पर हर्ष की लालिमा छा गई। अनुराग स्फूर्ति का भंडार है। द्वारचार के बाद बरात जनवासे चली गई। भोजन की तैयारियां होने लगीं। किसी ने पूरियां खाई किसी ने उपलों पर खिचड़ी पकाई। देहात के तमाशा देखने वालों के मनोरंजन के लिए नाच-गाना होने लगा। दस बजे सहसा फिर बाजे बजने लगे। मालूम हुआ कि चढ़ाव आ रहा है। बरात में हर एक रस्म डंके की चोट अदा होती है। दूल्हा कलेवा करने आए रहा है बाजे बजने लगे। समधी मिलने आ रहा है बाजे बजने लगे। चढ़ाव ज्योंही पहुंचा घर में हलचल मच गई। स्त्री - पुरुष बूढ़े-जवान सब चढ़ाव देखने के लिए उत्सुक हो उठे। ज्योंही किश्टतियां मंडप में पहुंचीं लोग सब काम छोड़कर देखने दौड़े। आपस में धक्कम-धकक््का होने लगा। मानकी प्यास से बेहाल हो रही थी कंठ सूखा जाता था चढ़ाव आते ही प्यास भाग गई। दीनदयाल मारे भूख - प्यास के निर्जीव-से पड़े थे यह समाचार सुनते ही सचेत होकर दौड़े। मानकी एक-एक चीज को निकाल-निकालकर देखने और दिखाने लगी। वहां सभी इस कला के विशेषज्ञ थे। मर्दों ने गहने बनवाए थे औरतों ने पहने थे सभी आलोचना करने लगे। चूहेदम्ती कितनी सुंदर है कोई दस तोले की होगी । वाह साढ़े ग्यारह तोले से रत्ती भर भी कम निकल जाए तो कुछ हार जाऊं यह शेरदहां तो देखो क्या हाथ की सफाई है जी चाहता है कारीगर के हाथ चूम लें। यह भी बारह तोले से कम न होगा। वाह कभी देखा भी है सोलह तोले से कम निकल जाए तो मुंह न दिखाऊं। हां माल उतना चोखा नहीं है। यह कंगन तो देखो बिल्कुल पक्की जडाई है कितना बारीक काम है कि आंख नहीं ठहरती कैसा दमक रहा है। सच्चे नगीने हैं। झूठे नगीनों में यह आब कहां। चीज तो यह गुलूबंद है कितने खूबसूरत फूल हैं | और उनके बीच के हीरे कैसे चमक रहे हैं किसी बंगाली सुनार ने बगाया होगा। क्या बंगालियों ने कारीगरी का
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