गोदान | Godan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30.4 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 प्रेमचंद रचनावली-6 गए। सोचा था महाजन से कुछ लेकर भूसा ले लेंगे लेकिन महाजन का पहला ही नहीं चुका। उसने इनकार कर दिया। इतने जानवरों को क्या खिलाएं यही चिंता मारे डालती है। चुटकी - चुटकी भर खिलाऊं तो मन-भर रोज का खरच है। भगवान् ही पार लगाएं तो लगे। होरी ने सहानुभूति के स्वर में कहा- तुमने हमसे पहले क्यों नहीं कहा ? हमने एक गाड़ी भूसा बेच दिया। भोला ने माथा ठोककर कहा-इसीलिए नहीं कहा भैया कि सबसे अपना दु ख क्यों रोऊं। बांटता कोई नहीं हंसते सब हैं। जो गाएं सूख गई हैं उनका गम नहीं पत्ती -सत्ती खिलाकर जिला लूंगा लेकिन अब यह तो रातिब बिना नहीं रह सकती । हो सके तो दस-सीस रुपये भूसे के लिए दे दो। किसान पक्का स्वार्थी होता है इसमें संदेह नहां। उसकी गांठ से रिश्वत के पेसे बड़ी मुश्किल से निकलते हैं भाव-ताव में भी वह चौकस होता है ब्याज को एक-एक पाई छुड़ाने के लिए वह महाजन की घंटों चिरौरी करता है जब तक पक्का विश्वास न हो जाय वह किसी के फसलाने में नहीं आता लेकिन उसका संपूर्ण जीवन प्रकृति से स्थायी सहयोग है। वृक्षों में फल लगते हैं उन्हें जनता खाती है खेती में अनाज होता है वह संसार के काम आता हैं गाय के थन में दूध होता है वह खुद पीने नहीं जाती दूसरे ही पीते हैं मेघों से वर्षा होती है उससे पृथ्वी तृप्त होती है। ऐसी संगति में कुत्सित स्वार्थ के लिए कहां स्थान ? होरी किसान था और किसी के जलते हुए घर में हाथ सेंकना उसने सीरय्रा ही न था। भोला की संकट-कथा सुनते ही उसकी मनोवृत्ति बदल गई। पगहिया को भोला के. हाथ में लौटाता हुआ बोला-रुपये तो दादा मेरे पास नहीं हैं। हां धोड़ा-सा भूसा बचा ह. वह तुम्हें दूगा। चलकर उठवा लो। भूसे के लिए तुम गाय बेचोग और मैं लंगा मेरे हाथ न कट जायंगे? भोला ने आर्द्र कंठ से कहा--तुम्हारे बैन भूखों न मरेंगे। तुम्हारे पास भी ऐसा कौन सा बहुत-सा भूसा रखा है। नहीं दादा अबकी भूसा अच्छा हो गया था। मैंने तुमसे नाहक भूसे की चर्चा की। तुम न कहते और पीछे से मुझे मालूम होता तो मुझे बड़ा रंज होता कि तुमने मुझे इतना गैं समझ लिया। अवसर पड़ने पर भाई की मदद भाई न करे तो काम कैसे चले 1 मुदा यह गाय तो लेते जाओ। अभी नहीं दादा फिर ले लुंगा। तो भूसे के दाम दूध में कटवा लेना। होरी ने दु खित स्वर में कहा -दाम-कौड़ी की इसमें कौन बात है दादा मैं एक दो जून तुम्हारे घर खा लू तो तुम मुझसे दाम मांगोगे ? लेकिन तुम्हारे बैल भूखों मरेंगे कि नहीं ? भगवान् कोई-न -कोई सबील निकालेंगे ही। आसाद सिर पर है। कइवी बो लूंगा। मगर यह गाय तुम्हारी हो गई। जिस दिन इच्छा हो आकर लने जाना। किसी भाई का लिलाम पर चढ़ा हुआ बैल लेने में जो पाप है वह इस समय तुम्हारी गाय लेने में है।
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