स्वामी रामतीर्थजी के लेख व उपदेश जिल्द 2 | Swami Ramteerthji Ke Lekh Va Upadesh jild 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
373
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थक
' जिहद दूसरी संक्षिप्तजीवनी श्
. नियमाचुसार तीथंराम ने गुजराँवाला दवाई स्कूल में, स्पेशल
क्लास में, भरती दोकर दो वर्ष में मिडिल श्रौर दो वर्ष में
इन्ट्रन्ल की भी परीक्षा दे दी । इन्ट्न्स की परीक्षा के समय
उनकी : ायु १४॥ वर्ष की थो, श्रौर परीक्षा में उनका नंवर पंजाव
' में दप्वां रहा ।
' झापके पिता का साम जवाहिरलाल था 1 थ्ापकी मादा शिशुपन में ही
मर गई थीं । इससे शाप झपनी दादी के हाथों पले । भगतजी बचपन
' ही से करामाती थे । झापकी शिक्षा साधारण देसी थी । झापको लड़कपन
में कुश्ती का बड़ा शोक़ था । शोर झागे चलकर श्राप इस . विद्या में
बड़े निषुण हो गये । एक वार आपने एक झपने से दूने पहलवान को
कुश्ती में दे सारा । मकतब की शिक्षा के वाद आप ठठेरी का धंधा करने .
लगे । और उसमें शीघ्र निपुण दो गये। अपनी १४ चर्ष की शायु में
झाप एक बार कटासराज तीथे के मेले पर गए । वहां झापने श्नेक
साघुझओों के दर्शन किये । कटासराज झापको बहुत ही भाया। श्यापने वहाँ
एक बर्तनों की दूकान कर ली । वहाँ झाप जो पेदा करते, सब साधुर-सतों
को खिला देते । झापने वहीं कुछ॒हृठ-योग की साधना की श्र उसमें
्ाप दृद़ साधक बने । आपको कथा-वार्ता और सत्संग का वड़ा शौक था ।
प्रौर जब कभी भक्ति शोर प्रेम का प्रसज्न झाता, तो आपके लोचनों में
जल भर जाता । इसी कटासराज में आप कुछ शेर व स.ख़ुन भी कहने
लगे । श्रापकी शेर ( कवितायें ) वड़ी चुरीली होती थीं । एक वार
ब्यापने योगवासिष्ठ की कथा दड़े ध्यान से सुनी, तव से झाप में धद्टेल त्रह्म-
ज्ञान का भाव भर गया । छाप सबको ईश्वर या घह्म कहने लगे । * अब
भी भगत जी के परिचित लोग उन्हें इंश्वर ( रव व खुदा ) ही कहते
हैं । जब छापमें इस घ्रह्म-भाव की जिज्ञासा वढ़ी, तो झाप फिर गुजरॉँवाला
ले छाये । यहाँ ापको कई मद्दात्साद्ों के दुशन हुये, जिनसे थ्ापने
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