उपलब्ध सट्टकों का आलोचनात्मक अध्ययन | Upalabdha Sattako Ka Aalochanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 उपरूपक क्या हैं?
रूपक रसाप्रित होते है, किन्तु उपरूपक भावाश्रित हैं। जहाँ काव्य में मुनि
गुरू, राजा अथवा पुत्रविषयक रति का संग्रह होता है तो उसे भाव की संज्ञा दी जाती
है।” भाव में भी रति आदि स्थायी भाव होते है, किन्तु ये उद्भूत होकर पूर्ण रूप से
रस की कोटि तक नहीं पहुँच पाते हैं। इसके कारण ही रूपको के अबर कोटि को
उपरूपक कहा गया । उपरूपकों में नृत्य की प्रधानता रहती है । इनमें रूपकों की भांति
वाक््यार्थाभिनय नही होता है, बल्कि प्रतिपद अभिनय होता है, जिसे पदार्थाभिनय कहते
है।” रूपक जहाँ धनिकों, राजाओं और विद्वानों आदि के अभिनय की वस्तु थे, वही
उपरूपक जनसामान्य के लिए लिखे एव मंन्वित हुए। इसमे प्राय' सामान्य जनो की ही
भाषा और रीति रिवाज थे एव उनके मंचन के लिए सामान्य जन अपने गृह सामग्री का ही
प्रयोग करते थे। इनके वस्तु , नेता एवं रस के आधार पर कई भेद होते है।
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1 रतिदेवादिविषया व्याभिचा री तथान्जित: । भाव: प्रोक्त.1। (सुत्र 48) काव्यप्रकाश उदुर्थ )
दे; भरत एवं भारतीय नाट्य कत्ना- सुरेन्द्र नाथदीक्षित पृ0सं0 120
दे वस्तु नेता रसः तेषां भेदक: - दशखरूपक प्रथम अध्याय
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