हरिमंदिर | Hari Mandir

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Hari Mandir by हरनाम दास सहराई - Harnam Das Sahrai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हरिमन्दिर | १७ || जायेंगे। कोई भूमने तक का कष्ट भी नहीं उठायेगा । इन मुगलों की तलवारों को जग लग गया है। ये नादिर का कुछ नह विगाड सकेंगे । शराब ने इनकी तलवारों को तडागी पहना दी है। यह काम सिंहो के पत्ते ही पड़ा हुआ है । भला कोई पूछे, भई, हम क्या लेना है परायी आग में जल कर १ हमारे खून के व्यावे तो ये भी हैं; वे भी । दोनो को लडकर हके हो लेने दो । वह जरा दिल्‍ली को लूट ले । दौ-एक डोने निकाल से । दवी हुई दौलत उखाड़ ली जाये । इनकी नाव से तो टप-टप बिच्छू गिरते हैं। जरा नाक साफ हो जाये, फिर मिह सोचेंगे । इस वार पंजाब नादिर से नही भिडेग। । हम तो नादिर की कमर तक नही देखेंगे, जब वह जा रहा होगा । जय वह दौलत से भरी गाड़ियों, अशरफ्यि से लदे ऊट और थोडे, गहनो की गठरियाँ लिये पंजाब से गुजरेगा तो हम उसके माशोदार बनेंगे । मीठा झूठ के बहाने खाया जाता है। हर तो भार ही हल्का कर सकते हूँ । हमे जरूरत ही क्‍या है जग के सामान की * धोडे, तोपें; दौनत- नादिर उन सबका वरेगा भी कया * वेदार का भार सफर मे बम भार ही वेहनर रहना है । उनका सफर हो वेहद लम्वा होगा । हमारा मेहमान है । मेवा वरना हमारा फहं है। यह गुरुमत लक्यीं जगल मे स्वॉवार किया जाना है । लग्खी जगल वे भूरमा ही शोधेंगे नादिरशाह को । इन ससुरे सुटेरो ने पजाव को जरनैली सडक यना रखा है। जब तक इनकी नाक मे सुकेल नहीं पड़ती, तय तक ये मानने वाले नहीं हूँ । और अभी तो नादिर सिफं पामा ही है । भभवी सुनने दो जरिया दा को--मा की गोद म जा छिंपेगा लाहौर पर उसकी बौन-सी इंट लगी हुई है ' ससुराल चला जायेगा। पर सिंह वहां चले जायें * यह हमारी जन्मभूमि है । मा-वाप का घर छोड कर हमें महा जाना है *' कद विजला सिह ने टोका, “गया जल की तरह पवित्र है सक्यी जंगल । खानें- पीने के लिए दाध-विलाव और वास के लिए रीछ 1 इस तरह वी वातें परदे के पीछे बी जाती हू । विद्वान वहते हैं कि दौवारों के भी वान होते हैं *शिंही में कोई चुगभयोर नहीं पैदा हो सकता । मैं दावे वे साथ पहता हू दि सारे वजाव मे चुगली याने वाला एवं भी आदमों नही है। सारे पंजाव वो उनसे हमदर्दी है । सारा पंजाब दुष्दी है । उन्होंने सारे पजाव की इज्जत की सूप मे हाल बर छाट डाला है। पंजाब के सार लोग सिक्ध हैं--चाहे कोई हिंदू हो या मुसलमान.” पारा सिंह एव क्षण वो रुके गया । फिर बोला, 'घानसा एक देस संवार है। सिंहों दो कौन-से घोड़े तयार बरने हैं! भुरे वो कच्चे पर डाला बोर हैपार 1....र सनसा मिह ने अपनों दादी पर हाथ फिराया । “जरा ठहरो, जल्दवाजी गो जरुरत नहीं है। जगर्या यां वी सौ सड्धिम पढने दो । उयवा दिमाग टिवामे आ जाय टटिहरी को तरह आसमान को सिर पर उठाये फिरता है ! सिह नो इसे वीडियो की तरह सगते हैं। अमृतसर खाली करवाना है (--तुम करवा के




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