धम्मपदम् | Dhammpadam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू. व नहीं किया जाठा तब तक अनुष्ठान, प्ूजा-पाठ सब व्यर्थ है । उनका हृढ विश्वास था नि यस्‌ की श्राप्ति से तो श्रत्यस्त भोग विलास से झोर न भत्यन्त कठ़ित तपस्या से ही सम्मव है । इसीलिये भगवान्‌ बुद्ध ने इत दो को हेय सानकर सध्यमा प्रतिपदा (मध्स मार्ग) का उपदेश दिया था-शिक्षुओं इन दो चरम कोटियों का सेवन नहीं करना चाहिये -- भोग-विलास मे लिप्त रहना भौर आारीर की कप्ट देना । इन दो कोटियों का स्याग्र कर मैंने मध्यम मार्ग की उपदेश दिया है जो भाल देने वाला, ज्ञान कराने वाला, शान्ति प्रदान करने साला है.” इस मध्यम प्रतिपषदा के भ्ाठ भद्ध हैं--सम्यक्‌ दृष्टि, सम्पक्‌ संकल्प, सम्यक्‌ वचन, सम्पक्‌ कर्म, सम्पकु भाजीविका , सम्यकू प्रयत्त, सम्यक्‌ विचार कौर सम्पक ध्यान । सक्षेप्र मे सपभित शोल इस परम का सार है । शील के तीन विभाग हैं --क्षुठ, गध्यम घौर महा 1 कूद शील के भन्तर्गत मदत्तादान त्याग, स्यभिचार हपाग, कठोर भापण त्याग, चापजूसी त्याग, हिंसा स्पाय, मध्यम शोत के प्रस्तगेंत पपयिड, जुपा घादि ब्यसनों का त्याग, ऐश्यय शस्या का त्याग, श्द्ध गार रंपाग, राजकथान्वोर कथा भाहैद ग्यय मथापो का ह्पाग, स्पर्थ के वाद विवाद का त्याग, दोत्य करें कर रयाग, पालश्डता, प्रमल्मता भादि दोपो का रयाग भोर महाशील के भस्तगंत घगविया, स्वप्त बयन, भूत- श्रेत गाधडी किघाधों बे स्याग, फलित ज्योतिष, सामुद्धिक शासन का त्याग, बबिता भादि घरने से जोविका चलान का त्याग झादि का विधात है । इन सब प्रपच्यी से दूर रहते वाले मनुष्य का सादा जीवन बया शिसी सोगी के जोवन से कम होगा *ै बया बट रूचने पुल भौर शास्ति को प्राप्त न वर सकेगा ? जब मानव १! सद्भुलमपी भावनायें भपने-पराये, देश-बाल शादि ये दाद शन्पनों से ऊार उठकर सावं भीम, सावंपुपीन झौर प्रारहोमाद में प्पनाय से पौतपोन होंगी तभी उसे सच्चा सुख प्राप्त होया । छाग्दोग्य उपनिपद्‌ “पो थे भूमा सरमुसमसु ” सिदान्त इमबो पुष्टि बरता है । भगवान्‌ बुद्ध के उपदेश सोकोत्तर नहीं, व्यावहारिक थे । सिगासोबादसुत्त से इन उपडेगा की ध्यादह्ादिकिता झधिक स्पप्ट हो गयी है । इस मुत्त में बठापा गपा है दि चार क्ंक्लेशो--दिसा, चोरों, स्पमिथार मोर झूठ के नाश




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