प्रत्यभिज्ञाहदयम् | Pratyabhigyahardayam

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Pratyabhigyahardayam by विशालप्रसाद त्रिपाठी - VishalPrasad Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आआचायें क्षमराज दे अभिनवगुप्त से किचिद्मात्र संसर्ग रखने वाला भी दार्शनिक के प्रति ऐसा समेक्षा का भाव नहीं रख सकता था, उनके शिप्य की तो वात ही दया ! हॉँ० दे के “संस्कृत साहित्य शास्त्र के इतिहास' के भ्रतुसार डॉ० व्यूल्हर ने इस समस्या के समाधान का जो सुभाव रखा है, वह है क्षेमराज के पिता के नाम का झनुसन्धान । स्वाभादिक भी है यदि पिता का पता चल जाए तो पुत्र के भरस्तित्व पर कौन सन्देह करेगा ? यह तो पहले ही कहा जा चुका है कि “ज्लेम” क्षेमराज का ही संक्षेपीकरण हैं; जिसका उल्लेख झ्ाचार्य अभिनवयुप्त मे “तन्त्रालोव” में भ्रपने पितृव्यपु्रों के राणुनाध्रसंग में किया है । हम यह भी कह चुके हैं कि झभिनव ने श्रपनी “अभिनव भारती” (पु० २६७) में अपने एक चाचा के साम का उल्लेख किया है । यद्यपि हम यह निश्यपुर्वक नहीं कह सकते कि “ग्रभिनव भारती” में उत्लिखित श्रभिनव के चाचा ही क्षेमराज के पिता थे; क्योंकि हो सकता है कि श्रभिनवगुप्त के श्र भी चाचा रहे हों । किल्तु श्रभिनवगृष्त के पितामह के विपय में इस प्रकार का कोई प्रबन नहीं उठता, उनका तो नाम भी क्षेमित्द्र के पिततामह से भिन्न था । श्रभिनवगुस्त के पितामह का नाम बरुहगुप्त बताया जाता है । अतः, यदि हम क्षेमराज को श्रभिनवगुप्त का चचेरा भाई मानते हैं तो, स्वभावतः, वराहगुप्त क्षेमराज के भी पितामह थे । किन्तु कषेनिख के पितामह्व का चाम, जैसा कि उनकी “महाभारत मंजरी' से स्पष्ट हैं, निम्नादाय था 1 उपूकत युक्तियों से यह वात स्पष्ट हो जाती है कि क्षेमराज तथा लेमेन्द्र दो भिस्त-भिन्‍न व्यक्तियों के नाम ये; तथा दोनों के क्षेत्र भी भिन्न थे | प्रतिभा एवं कृतित्व शैवागमों से प्राप्त वीज से प्रस्फुटित जिस शैंबदर्चन के अंकुर को अभि- नवगुप्त ने श्रपने प्रतिभा-जल से सींचंकर विशालकाय पादप का रूप दे दिया उसके संरक्षण का श्रेय क्षेमराज को दी दिया जाना चाहिए । यद्यपि क्षेमराज की पारिवारिक परिस्थिति के विपय में हम कुछ झ्धिक नहीं कह सकते क्न्त “एप ८ काकनीरेपु बभूव सिन्घुरधिकः सिन्घोल्च निस्नाशाय: माप्तस्तस्य गुणाप्रकाशयशस: पुत्र ज्रकादोन्द्रतामू भर श्र है श् श्रस्पातातिशयस्य तस्प तनथः कमेन्डनामा मबलु । महाना० मंज०




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