प्रज्ञापनासूत्र - भाग 1 | Pragyapanasutram Part- 1

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Pragyapanasutram Part- 1 by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झागम साहित्य के वयोवृद्ध विद्वान्‌ प श्री बेचरदासजी दोणी ने श्रागमसम्पादन के क्षेत्र में बहुमूल्य योग प्रदान किया । खेद है कि वे अरव हमारे वीच नही रहे । विश्युत-मनीपी श्री दलसुखभाई मालवणिया जैसे चिन्तनशील प्रज्ञापुरुष झागमों के भाधुनिक सम्पादन की दिला मे स्वय भी कार्य कर रहे है तथा भ्रनेक विद्वानों का मार्ग-दर्शन कर रहे है । यह प्रसन्नता का विपय है । इस सब कार्ये-शैली पर विहगम अवलोकन करने के पइचात्‌ मेरे मन मे एक संकल्प उठा । झाज प्राय सभी विद्वानों की का्येजैली काफी भिन्नता लिये हुए हे । कही आआगमों का सुल पाठ मात्र प्रकाशित किया जा रहा है तो कही श्रागमो की विज्ञाल व्यास्याये की जा रही है। एक पाठक के लिये दुर्बोध है तो दूसरी जटिल । सामान्य पाठक को सरलतापुर्वेक श्रागमज्ञान प्राप्त हो सके, एतदर्थ मध्यम मार्ग का श्रनुसरण झावइ्यक है । श्रागमो का एक ऐसा सस्करण होना चाहिये जो सरल हो, सुबोध हो, सक्षिप्त और प्रामाणिक हो । मेरे स्वर्गीय गुरुदेव ऐसा ही श्रागम-सस्करण चाहते थे । इसी भावना को लक्ष्य मे रखकर मैने ५-६ वर्प पुर्व॑ इस विपय की चर्चा प्रारम्भ की थी, सुदी् चिन्तन के पश्चात्‌ वि स २०३६ वैज्ञाख शुक्ला दशमी, भगवान्‌ महावीर कैवल्यदिवस को यह दृढ़ निद्चय घोषित कर दिया श्ौर झागमवत्तीसी का सम्पादन-विवेचन कार्य प्रारम्भ भी । इस साहसिक निर्णय मे गुरुभ्नाता शासनसेवी स्वामी श्री ब्रजलाल जी म की प्रेरणा/प्रोत्साहन तथा मार्गदर्शन मेरा प्रमुख सम्बल बना है । साथ ही श्रनेक मुनिवरो तथा सद्गृहस्थो का भक्ति-भाव भरा सहयोग प्राप्त हुआ है, जिनका नामोल्लेख किये बिना मन सन्तुष्ट नही होगा । झागम अनुयोग शैली के सम्पादक मुनि श्री कन्हैयालालजी म “कमल”, प्रसिद्ध साहित्यकार श्री देवेन्द्रमुनिजी म शास्त्री, भ्राचा्य श्री आत्मारामजी म के प्रश्षिष्य भण्डारी श्री पदमचन्दजी म एव प्रवचनभूषण' श्री झमरमुनिजी, विद्वदु- रत्न श्री ज्ञानसुनिजी म , स्व॒विदुषी महासती श्री उज्ज्वलकुवरजी म की सुशिष्याएं महासती * दिव्यप्रभाजी, एम ए , पी-एच डी , महासती मुक्तिप्रभाजी तथा विदुषी महासती श्री उमराव- कुवरजी म “अरचेना', विश्वुत विद्वानू श्री दलसुखभाई मालवणिया, सुख्यात विद्वान्‌ प श्री शोभाचन्द् जी भारिल्ल, स्व प श्री हीरालालजी शास्त्री, डा छगनलालजी शास्त्री एव श्रीचन्दजी सुराणा “सरस” झादि मनीषियों का सहयोग झागमसम्पादन के इस दुरूह कार्य को सरल बना सका है । इन सभी के प्रति मन झादर व कृतज्ञ भावना से श्रभिभूत है । इसी के साथ सेवा-सहयोग की दृष्टि से सेवाभावी दिष्य मुनि विनयकुमार एव महेन्द्र सुनि का साहचर्य-सहयोग, महासती श्री कानकुवरजी, महासती श्री भणकारकुवरजी का सेवाभाव सदा प्रेरणा देता रहा है । इस प्रसग पर इस कायें के प्रेरणा-ख्रोत स्व श्रावक चिमनसिंहजी लोढ़ा, स्व श्री पुखराजजो सिसोदिया का स्मरण भी सहजरूप मे हो भ्राता है जिनके अथक प्रेरणा-प्रयत्नो से झागमसमिति अपने कार्ये मे इतनी शीघ्र सफल हो रही है । झल्पकाल मे ही पन्‍्द्रह झागम ग्रत्थो का मुद्रण तथा करीब १५-२० श्रागमों का झनुवाद- सम्पादन हो जाना हमारे सब सहयोगियों की गहरी लगन का द्योतक है । मुझे सुदृढ़ विदवास है कि परम श्रद्धय स्वर्गीय स्वामी श्री हजारीमलजी महाराज भ्रादि तपोपूत भात्माओ के शुभाशीर्वाद से तथा हमारे श्रमणसघ के भाग्यद्याली नेता राप्ट्र-सत झाचायें श्री भानत्दऋषिजी म आदि मुनिजनो के सदुभाव-सहकार के बल पर यह सकल्पित जिनवाणी का सम्पादन-प्रकाशन कायें शीघ्र ही सम्पन्न होगा । इसी शुभाशा के साथ, -सुनि मिश्रीमल “सधुकर' (युवाचायें)




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