जैन संस्कृत महाकाव्य परम्परा और अभयदेव कृत जयंतविजय | Jain Sanskrit Mahakavya Prampara Aur Abhaydev Krit Jyant Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कृत के जैन महाकाब्यों की परम्परा | [ में मान्य हैं । इनकी रचनाओ में किसी ब्रत का माहात्म्य या किसी महापुरुष का चरित्-चि्रण मिलता है । कवि अभयदेव विरचित 'जयन्त-विजय' महाकाव्य में प०्न्चपरमेष्ठी * नमस्कार के माहात्म्य का वर्णन किया गया है । अमरचन्द्र सुरि ने 'पद्मानन्द' महाकाव्य की रचना की है जिसमे जैन तीर्थंकर ऋषभदेव का चरित्र चिल्नित है । प्रस्तुत महाकाव्य का निर्माण पद्म मन्त्री की प्राथ॑ता पर किया गया । अत पद्म को आर्नात्दित करने के कारण ही इसका नाम 'पद्मानत्द' * रखा गया । इसी प्रकार इन्होने 'बालभारत' महाकाव्य की रचना वापट निवासी ब्राह्मणों की प्रार्थना पर की है जिसका कथानक लोक-विश्वुत पाण्डदो. के चरित्र से सम्बन्धित है । इसी प्रकार देवानत्द सूरि की आज्ञा पाकर देवप्रभ सूरि ने “'पाण्डव चरित' की तथा अपने गुरु जिनपालोपाध्याय की आज्ञा से चन्द्र तिलक उपाध्याय ने “अभय कुमार चरित' की रचना की है । अमरचन्द्र सूरि, बालचन्द्र सूरि, उदयप्रभ सूरि, माणिक्यचन्द्र सुरि और नयचन्द्र सुरि जैसे प्रमुख कवियों को भी राजाश्रय प्राप्त था । नयचन्द्र सुरि ग्वालियर नरेश बीरम देव के तथा अन्य कवि गर्जरेश्वर वीरधवल बीसलदेव के महामात्य वस्तुपाल की विद्वस्मण्डली में थे । इन कवियों को धन का लोभ नहीं था फिर भी इन्होंने अपने आश्रयदाता प्रभुओ का गुणगान किया तथा उन्हें अपने महाकाव्य का नायक बनाया! । घामिक भावना-- जैन कवियों का प्रमुख लक्ष्य जेन धर्म का प्रचार एव प्रसार था । अत उन्होंने धामिक चेतना एवं भक्ति-भावना से प्रेरित होकर महाकाव्यों की रचना की । उनकी इस भावना की अभिव्यक्ति उनकी रचताओ में स्पष्ट परिलक्षित होती है । इस प्रकार जैन कवियों का एक ओर लक्ष्य स्वात्त सुखाय काव्य की रचना करना था तथा दूसरी ओर उसके माध्यम से जनसाधारण मे जैन धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न करना था । इसीलिए उन्होंने सरल से सरल भाषा में अपने सिद्धान्तो का प्रतिपादन किय। । उनका साहित्य विद्वद्वर्ग के लिए ही न होकर जन-सामान्य के लिए है । उन्होने जैन धर्म के जटिल सिद्धान्तो का प्रतिपादन न करके अहिसा, सत्य, अस्तेय ब्रह्मचर्य आदि पर विशेष बल दिया है । उनके प्रेमाख्यान काव्य में भी धामिक भावना की स्पष्ट छाप है । महाकाव्यों का प्रमुख लक्ष्य भी यही है । इस प्रकार जैत सस्क्ृत महाकाव्यों के निर्माण मे धमिक भावना की अभिव्यक्ति का प्रमुख लक्ष्य रहा है । पारस्परिक गरुछोय स्पर्धा - जैन महाकाव्यों के निर्माण में पारस्परिक गच्छीय स्पर्धा भी प्रेरणा-त्रोत रही है । इसका प्रमुख कारण यह है कि जैन धर्म आरम्भ से ही विभिन्न गच्छो में विभाजित हो गया था । यथा -चन्द्र गच्छ, नागेन्द्र १ कवि अभयदेव, जयन्तविजय, तृतीय सर्ग । २ कवि अमरचन्द्र सूरि, पद्मानत्द महाकाव्य, १४६१ !




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