माइकेल मधुसूदनदत्त | Maikel Madhusudandutt

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Book Image : माइकेल मधुसूदनदत्त  - Maikel Madhusudandutt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माइकेठ मघुसूदनदत्त:। श्१ कटी 2०घदननटीलननालादाननटडननडाननटद०नट+नरादननेदाडा+नरदा दर्शन, विज्ञान और साहित्य की शिक्षा देने के पक्तपांती थे शऔर सुप्रसिद्ध संस्कृत 'दोरेस देयान उइलिसन' देशीय भांषा द्वारा शिक्षा देने के पक्षपाती थे । राजा राममोदइन राय ने पाश्यात्य - और बादू रामकमल सेन ने प्राच्य-शिक्षा का समर्थन किया था लेकिन झंत में छाडे मेकाले के समर्थन से शँगरेज़ी भाषा द्वाय भाप्तीयोँ को पाश्यात्य-द्शन और विशान की शिक्षा देने का प्रस्ताव सीकृत हो गया । मेकालें ने कहा, हिन्दू जाति निस्सार है और दिव्दू शाखो में कुछ भी ज्ञानने योग्य बातें नहीं हैं । सं्कत के निरक्षर भट्टाचाये छाडे मेकाले ने अपने अभ्यासालु सार यहां तक कह डाला,-+.5. पंश१७ 80611 04 & ठु००ए४ कप0680 प्रंफ्रहाए 18 कण ६6 भफणे० ताधप6 प्रंन्नेगा६७पा' 0 पाता घाएं 80७१ अर्थात्‌ किसी पीय उत्छष्ट पुस्तकालय की एक ाऊमारी भी सार संस्कत शर: 'झरबी सादित्य के बराबर हैं” मेकाले तथा झन्य विदेशियों ने प्राच्य-साहित्य की तीघ्र शाछोचना की । इस श्ान्दोलन के कुछ दिन पहले सती-प्रथा पर बड़ा भारी झान्दोलन दो खुका था। सती-प्रथा निवारण के पक्तपातियों ने हिन्दू शाख्रों के समस्त भ्रम और 'प्रमादो को लेकर सती-प्रथा के पदक्षपातियों की तीव्र * छालोचना की 1 इनकी तरह ंगरेज़ी शिक्षा के पद्षपातियों ने भी संस्कृत भ्रन्थों, की झठौकिक और अतिशयोक्ति पूणण बातों को सेकर झपने वि ध्द्ध पत्त की कड़ी समालोचना की । उन लोगों ने .. कहां--'जिस साहित्य में इजुमान जी सरीखे घीर को लेंगूर लिखा है और दद्दी, दूध तथा घृत झादि के समुद्रीं के मथन का वणुन है उसमें जानने योग्य क्या मिल सकता है १” इन सबका परिणास यह हुआ कि नवीन गरेज़ी शिक्षित मंजुष्य संस्कत-सादित्य को तुच्छ समझने .रूगे, उसके पढ़नेवालो का मज़ाक उड़ाने




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