पंथ और उनकी ग्रंथि | Panth Aur Unki Granthi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू ६.
ग्रतिभा स्वच्छुन्द होने की फिक्र मे रहती थी ।' नकलची के दोप से
सुक्त होने के लिए उन्होने साहित्य का गम्मीर् अध्ययन त्ारंभ किया
जिसके फलस्वरूप उनका ज्ञान और शब्द-माण्डार वढा। उसका
'परिणाम यह इुआा कि स्कूल के निबंधों में उन्होंने श्रप्रचलित एवं क्लिप
शब्दों का प्रयोग करना आ्रारंभ कर दिया जिसे शध्यापकगण भी पूरा-
रूपेश समभ न पाये, अतएव उन श्रध्यापको ने पंत॑ को यह कहा क्रि
चह हिन्दी मे भी उत्तीणा न हो सकेगा ।.
सन् १९१६ से पंत नियमित रूप से कविता लिखने लगे ।. कमभी-
कभी तो वे एक ही दिन मे दो-तीन कविताएं लिख लिया करते थे |
पंत्त श्रारंभ से ही खडी बोली मे कविता लिख रहे थे, घ्रजभापा को बे-
मौसम की शहनाई मानते थे । इसी समय उन्होंने 'हार' नामक एक
उपन्यास लिखा, जो प्रकाशित नहीं हुद्ा । सन् १६१७ ई० मे उन्होने
मैट्रिक की परीक्षा पास की ।. 'जुलाई १६२० मे वे म्योर सेट्रल कालेज
से भरती हुए । उन दिनो वे हिन्दू बोर्डिंग हाउस मे रहते थे । उन्होने
अपने लिए; विपय चुना था--संस्कृत, इतिहास और तकशास्त्र । इसी
च्प बोर्डिंग हाउस मे एक कवि-सम्मेलन हुआ था जिससे पत ने “स्वग्न?
कविता पढ़ी--
बालक के कंपित अधघरों पर,
किस अतीत स्खति का खदु हास ?
जग के इस अविरत निद्वा का,
करता नित रह-रह उपहास ?
उन स्वप्नों की स्वर्ण सरित का,
सजनि ! कहाँ शुचि जन्मस्थान ?
मुस्कानों में उछल उछल खदु,
व बहती वह किस ओर अजान ?
.. श्ागत विद्वानों ने पत की काव्य प्रतिभा की प्रशसा की । उस समय
पंत एक नौसिखुए कवि नहीं, वरन् हिन्दी कविता के यशस्वी कवि हो
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