पंथ और उनकी ग्रंथि | Panth Aur Unki Granthi

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Panth Aur Unki Granthi by कृष्णकुमार सिन्हा - Krishna Kumar Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू ६. ग्रतिभा स्वच्छुन्द होने की फिक्र मे रहती थी ।' नकलची के दोप से सुक्त होने के लिए उन्होने साहित्य का गम्मीर्‌ अध्ययन त्ारंभ किया जिसके फलस्वरूप उनका ज्ञान और शब्द-माण्डार वढा। उसका 'परिणाम यह इुआा कि स्कूल के निबंधों में उन्होंने श्रप्रचलित एवं क्लिप शब्दों का प्रयोग करना आ्रारंभ कर दिया जिसे शध्यापकगण भी पूरा- रूपेश समभ न पाये, अतएव उन श्रध्यापको ने पंत॑ को यह कहा क्रि चह हिन्दी मे भी उत्तीणा न हो सकेगा ।. सन्‌ १९१६ से पंत नियमित रूप से कविता लिखने लगे ।. कमभी- कभी तो वे एक ही दिन मे दो-तीन कविताएं लिख लिया करते थे | पंत्त श्रारंभ से ही खडी बोली मे कविता लिख रहे थे, घ्रजभापा को बे- मौसम की शहनाई मानते थे । इसी समय उन्होंने 'हार' नामक एक उपन्यास लिखा, जो प्रकाशित नहीं हुद्ा । सन्‌ १६१७ ई० मे उन्होने मैट्रिक की परीक्षा पास की ।. 'जुलाई १६२० मे वे म्योर सेट्रल कालेज से भरती हुए । उन दिनो वे हिन्दू बोर्डिंग हाउस मे रहते थे । उन्होने अपने लिए; विपय चुना था--संस्कृत, इतिहास और तकशास्त्र । इसी च्प बोर्डिंग हाउस मे एक कवि-सम्मेलन हुआ था जिससे पत ने “स्वग्न? कविता पढ़ी-- बालक के कंपित अधघरों पर, किस अतीत स्खति का खदु हास ? जग के इस अविरत निद्वा का, करता नित रह-रह उपहास ? उन स्वप्नों की स्वर्ण सरित का, सजनि ! कहाँ शुचि जन्मस्थान ? मुस्कानों में उछल उछल खदु, व बहती वह किस ओर अजान ? .. श्ागत विद्वानों ने पत की काव्य प्रतिभा की प्रशसा की । उस समय पंत एक नौसिखुए कवि नहीं, वरन्‌ हिन्दी कविता के यशस्वी कवि हो




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