कर जांच आयोग | Kar Jaach Aayog

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Kar Jaach Aayog  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९ ही करापात का दिस्लेपण करने में प्रयुक्त सामग्री तथा उपायों के सीमित होने पर भी जौर दिया गया। आयोग का मत है-- हम फिर भी यह वता दें कि हमने इन तर्थ्यों को बहुत ही सीमित रूप से इस्तेमाल किया है, और सो भी काफी साववानी के साथ 1” आयोग का यह अनुमान है कि सारी अर्थव्यवस्था में कुल उपभोगकर्तता-व्यय का ३७ प्रतिगत अस्यारोपित (इम्प्युटेड) मूल्य के रूप में था । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उपभोगकर्त्ता-व्यय का एक बहुत वडा हिस्सा अथेव्यवस्था के मौद्रिक क्षेत्र से वाह था, भौर देहाती क्षेत्र मे तो अमौद्रिक भाग का यह ननुपात और भी अधिक था । मोटे तौर पर यह कहा जा सकता हैँ कि देहाती भाग के कुछ उपभोग का ४५ प्रतिशत गैर नकदी था, जद कि शहरों के खर्चें का १० प्रतिशत ही ऐसा था । प्रति व्यक्ति कर के हिसावों की चुलना से यह ज्ञात हुआ कि देहाती इलाकों की तुलना में शहरी इलाकों का प्रति व्यक्ति कर का अनुपात सर्वत्र निश्चित रुप से अधिक था । केवल यही नहीं, कि शहरी इलाकों का कर प्रति व्यक्ति अधिक है, व्कि ज्यो ज्यो हरी उपादानो में वृद्धि होती है, त्यो त्यो खर्चवाले प्रत्येक वर्गे के छिए कर वढता जाता है। आयोग का यह अनुमान है कि प्रति व्यक्ति के कुछ खिच॑ का ३६ प्रतिशत परोक्ष करो में आ जाता है, और यह कुल नकद क्रयों का ५७ प्रतिगत हैं। घहरीपन की वृद्धि होने के साथ साथ खचं का स्तर बढ़ता है मौर इसके साथ ही, कुल खर्च के साथ नकद का गौर नकद खर्च के साथ कर का मनुपात वढता जाता हूँ । इसके वावजूद भो लायोग ने यह मोटा उपसद्वार निकाला है कि दहरी आदादी से देहाती भावादी की अधिकता के कारण इस दिव्लेपण के अन्तर्गत परोक्ष कर राधि में देहाती इलाकों का दान निरपेक्ष रूप से बाहरी इलको को अपेक्षा वहुत अधिक है $ आयोग ने केन्द्रीय उत्पादशुल्को, विक्रीकरो, भूमिराजस्व तथा आय-कर के आपात के सम्बन्ध में व्योरेवार अच्ययन प्रस्तुत किया हैं। उसके हिसाव के अनुसार नकद खर्च की तुलना में केन्द्रीय उत्पादशुरुको का औसत आपात १ ५ प्रतिशत हैं। देहाती और दाहरी भागों की तुलना करते हुए यह पाया गया कि यद्यपि खचं की सारी सतहों पर थहरी इलाकों में आपात कुछ अधिक हैँ, पर विपमता अधिक नहीं है । विशेष ध्यान देने योग्य एक वात यह है कि कुछ आय वर्गों पर उत्ताद थुल्को में कुछ थोड़ी सो वृद्धि हुई जिमका मुख्य कारण यह था कि कपडे और सिंगरेटों पर भि नक तटकर लग थे । विकीकरों के सम्बन्ध में आायोग का यहू मत है कि विभिन्न व्यय वर्गों का आपात थहरी और देहाती भागों में विदेप भिस्न नहीं हैं, प्रत्येक वर्ग में यह करीव करोव उतना ही हैँ, तथा कर आनुपातिक हूँ, ने कि मय वृद्धिणीछू रुप में । केन्द्रीय उत्पाद करो की नपेक्षा चिक्रीकर के सम्बन्ध में देहानी और घहरी इलाकों में बहुत अधिक अन्तर है । और “देहाती इलाकों में सघिकतर नकद सखरीदारियाँ कर वचा जाती है, क्योकि या तो बिखरे हुए स्वानीय सूत्रों से वे चीजे प्राप्त होती हैं, था वे चीजें ऐसी है जिन पर कानूनी रुप से था जमली रुप में: कार हू ही नदी” । भूमि राजस्व के लापात के अध्ययन के सम्बन्ध में कई विश्षेप समस्याएँ सामने जाई । विभिन वर्गों की देहाती आायो के सम्दस्थ में तथ्य तथा आने प्राप्त नहीं थे, घौर




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