शंकर और दयानन्द | Shankar Aur Dayanand

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Shankar Aur Dayanand by आनन्द स्वामी सरस्वती - Anand Swami Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ झंकर श्रौर दयानत्द चुड़ामणि' श्रौर 'तत्वबोध' में श्रौर महर्षि दय!नन्द ने 'सत्यार्थप्रकाश' श्ौर “ऋग्वेदादिभाष्य-भूमिका' में इसका वर्णन किया है । कुछ कह सकते हैं कि खोज तो ब्रह्म की करनी है, फिर पहले इन चार गुणों की क्या आ्रावद्यकता है ? वया कोई व्यक्ति बिना पढ़े-लिखे जाकर कह सकता है कि सुक्के इज्जिनीयरिंग के कॉलेज में प्रविष्ट करके इडष्जि- नीरयरिंग की, या. मैडिकल कॉलिज में प्रविष्ट करके डॉक्टर की डिग्री दे दो ? नहीं, इन कॉलिजों में प्रविष्ट होने से पूर्व कुछ श्रौर डिग्रियाँ प्राप्त करनी पड़ती हैं । इसी प्रकार “ब्रह्मप्राप्ति” के कॉलिज मैं प्रविष्ट होने से पूवे॑ भी चार साधनों को अपनाकर चार गुण श्रपने श्रत्दर उत्पन्न करने पड़ते हैं। वे चार गुण हैं श्रात्मा श्रौर श्रनात्मा का विवेक, लोक श्रौर परलोक में कर्म के फल से वैराग्य, पट सम्पत्ति र मुक्ति की तीन्र इच्छा । ड इन चारों गुणों की वर्णन करते हुए जगद्गुरु झंकराचार्य 'विवेक- चूड़ामणि' के ६४वें इलोक में कहते हैं, “जैसे रोगी पुरुषों का रोग केवल झषध का नाम सुन लेने मात्र से दर नहीं हो जाता, ऐसे ही भवबन्ध से ब्रह्म का साक्षात्‌ श्रनुभव किये बिना केवल यह कह देने से कि मैं ब्रह्म हूँ' कोई मुक्ति नहीं पा सकता । मैं ब्रह्म हूँ, ऐसा कहने को अधिकार उस व्यक्ति को है, जिसने इन चारों गुणों को क्रियाटमक रूप देकर .परमात्मा का साक्षात्कार कर लिया है ।” श्रागे चलकर एक ग्रौर स्थाच पर उन्होंने कहा है, “सब शत्रुश्नों को नष्ट किये विनां श्रौर सबको विजय किये बिना जैसे कोई व्यवित 'मैं राजा हूँ ऐसे -कहने मे राजा नहीं हो जाता, उसी प्रकार इस भवसागर से पार उतरे बिना कोई व्यक्ति मैं ब्रह्म हूँ' कहने से मुक्त नहीं हो सकता ।” , इन चार गुणों की चर्चा मैंने कल की थी । उनमें से “पट सम्पत्ति, ऊ: प्रकार की सम्पत्ति में से पहली के सम्बन्ध में भी कहा था । महू उम्पत्ति है 'शाम'--प्रत्येक दशा में श्रपने-झाप को शान्त रखना | सुख पं श्रौर शान्ति में तो सब व्यक्ति शान्त रहते ही हैं। जब दा झा पान्ति दोनों न हों, चहूँ प्र ज्वालाएँ जल रही हों, उथल-पुथल €




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