सादर समर्पण | Sadarsamarpan

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Sadarsamarpan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रेरे ) हैरै ) खाजाया करो शोर १) या २) मासिक छोर छात्तग देदिया करेंगे, तब उसने कहा कि. मद्दादय में यद्दी चाहता था, झघ. को तो दो झांखें दी चाहियें. झन्पेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा.. (अभि.) मूर्ख विद्वानू की एकसी इज्जत होना.. ( प्रयोग ) इसके. प्रयोग के लिये एक पुस्तक बनी छुई है जिसमें यदद . बृत्तान्त इस तरह लिखा है कि एक नगर में मट्टी से सुबर्या . (३४. )' एभि.) ६ प्रयोग ) तक की चीजें टका सर बिक्ती थीं घदां पर एक साथू झपने चले समेत पहुंचे, साधू ने बहदां के दालात देख बहां रहता: स्वीकार न किया, परन्तु चेला न माना झौॉर ठालचबश बची. रइने लगा. एक दिन एक आदमी को .फॉसी. दींज्ञारददी थी: परन्तु बद्द फाँसी चोड़ी थी इसलिये उस मनुष्य को उतार घोर उसके बदले चेंलाजी फाँसी पर चढ़ाये, तत्र फिर उसको. मुरु ने कद्दा कि हम तुम से कहते थे कि यट्टां मत ठद्दरो यद्दां तो झंघेर नगरी खोपट राजा है झा दि.. अंधों में काना सदौर. मूखों में थोड़ा विद्वान: भी पूजनीय होता हैं. पक गांव में थोड़े से पढ़े लिखे की बड़ी इजत छोती थी जब विद्वानों में उसकी, चरचा चली तब यह थात पएक॑ विद्वान नेकद्दी कि उसका ऐसा मामला दे जेसे कि झंघों में. क्लाना सदीर. (१३५) झंघे के हाथ बटेर लगना: (झमि.) जो मनुष्य किसी वस्तु के पाने की योग्यता न रखता हो झार भाग्यवश, उसे बह चजि मिलजावे.




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