गुणस्थान | Gunsthan

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Gunsthan by ब्रम्चारी मूलशंकर देसाई - Bramchari Moolshankar Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४. पंचांग और झष्टाज् नमस्कार करना चाहिए । ऐसे मुनि महाराजाद्मों की ही नवधा भक्ति होती है । १ पडगाहना, २ ऊँचा झासन देना, ३ पैर प्रशासन करना, ४ नमस्कार करना, “« पूजा करना, ९६ मनःशुद्धि, ७ वचन शुद्धि, ८ कायशुद्धि, ९ झांदहार जल शुद्धि । पंचम गुणस्थानवर्ती ऐसलक, चल्लक, अ्जिका, चल्लिका की नवधा भक्ति में से पूजा को छोड़कर शेष झाठ श्रकार को भक्ति करनी चाहिए । फिर भी जो जीव पंचम सुणस्थासवर्ती जीवों की पूजा करते हूं वे विनय सिथ्याइए्टि हैं । पंचम झुण स्थान के जीव हमारे सहधर्मी हैं इस कारण ये जिसेन्द्र सगवान्‌ के समबशरण में भी एक कोठे में एक साथ बैठते हैं । सहधर्मी के नाते से हम उन्हें इच्छाकार कहते हैं । जिन जीचों को नमोस्तु कहने की श्राज्ञा नहीं है ऐसे जीवों की पूजा करना घिनय सिध्यात्व नहीं है तो क्या है? पद के अनुकूल भक्ति करना ही विनय तप है । पद से विपरीत भक्ति का नाम विनय सिधथ्यात्व है | शंक्ता--संशय सिथ्यात्व किसे कहते हैं ? समाधान---संशय सपिथ्यादष्टि जीव, यह करूपना करता है कि भक्ति से मोक्ष होता है या नहीं, पुण्य से संवर निजेरा होगी या नहीं, शुद्ध आहार सेसे से पुण्य होता है या नहीं, तत्व का निणंय नहीं है पर सब तरफ




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