श्रावकाचार संग्रह - भाग 5 | Shravakachar - Sangrah Vol. - V
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
422
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना ७
सिथ्यात्वपूर्ण एवं मन-गढन्त लोक-प्रचलित मिथ्यात्रतो का वर्णन कर उनके त्याग का
जैसा उपदेग किशनसिंह जीने दिया है वैसा दोष दोने नही किया है।
पदन कविने मिथ्यात्वके निरूपणके परचात् सम्यक्त्व-प्राप्तिकी योग्य भूमिका वर्णन
कर सप्त तत्त्वोका भौर सम्यक्त्वके भेदोका स्वरूप विस्तारसे कहा है । किन्तु किगनरसिंह जीने
ेंपन क्रियाभो को गिनाकर और सिथ्यात्व एव सम्यक्त्वका कुछ थी वर्णन न करके सूलगुणोका
वर्णन करते हुए इस प्रकारके अमक्ष्योका विस्तारसे वर्णन किया है। दौलतराम जीने भी
सगलाच रणके परंचात् मिथ्यात्व-सम्यवत्वका वर्णन न करके अमक्ष्य-पदार्थोका वर्णन किया है ।
साथ ही दोचोने भक्षय-अभक्ष्य वस्तुमोको काल-मर्यादा का वर्णन प्राचीन गाथाओ के प्रमाण के
साथ किया है ।
पदमकवथविने रत्नकरण्डकके समान सर्वप्रथम सम्यक्त्व के अगोका विस्तृत स्वरूप और उनसे
प्रसिद्ध पुरुषों की प्रदनोत्तर शावकाचार के समान कथाओ का निरूपण किया है । किन्तु किशन
सिंह जी ने सम्यक्त्व के अगो का भौर उनमें प्रसिद्ध पुरुषो को कथाओं का कुछ भी उल्लेख नही
किया है । दौलततराम जो ने अति संक्ष प मे भाठो अगो का स्वरूप कह कर उनमे प्रसिद्ध पुरुषों
के केवल नामोका ही उल्लेख किया है ।
पदम कवि ने उक्त प्रकार से सम्यग्दर्शन का सागोपाँग विस्तृत वर्णन करके परचात्
दर्शन प्रतिमा का वर्णौन करते हुए सर्व प्रथम सप्त व्यसन-सेवियो मे प्रसिद्ध पुरुषो का उल्लेख कर
उनके त्याग का उपदेश दिया । ततत्पदचात् अष्टमूल्गुण, पालने जल-गालने भौर रात्रिभोजन के
दोष बत्ताकर उसके त्यागका उपदेश दिया । सदनन्तर ब्रत प्रतिमाके अन्तगंतत श्रावकके बारह
ब्रतोका विस्तार से वर्णन किया है । किन्तु किशनसिंहजीने प्रतिभागो के आधार पर उक्त
वर्णन न करके आठ मूल गुणों का वर्णन कर अत्यक्ष्य पदार्थों का विस्तार से वर्णन कर उनके
त्याग का और चौके के भोत्तर ही भोजन करने का विधान किया है ।
पदम कविने सम्यक्त्वके अगोका गौर उनमे प्रसिद्ध पुरुषोको कथाओका वर्णन कर
न्रत प्रतिमा भादिका विस्तारसे वर्णन कर अन्तमे छह आवइयक, बारह तप, रत्तवय धर्म
और मेत्री-प्रमादादि भावनाओका वर्णन कर अन्तसे समाधिमरणका वर्णन कर अपनी वृहत्
प्रदस्ति दी है । किन्तु किदशनर्सिहुजीने अभक्ष्य व्णनके पदचात् रजस्वला स्त्रीके कर्तव्योका
विस्तारसे वर्णन कर श्रावकके बारह ब्रतोका गौर समाधि मरणका वर्णन किया है । त्तद-
स्तर श्रावककी ग्यारह प्रतिमामोका सक्ष पसे वर्णन कर जल-गालन, रात्रि भोजन-त्यागरूप
अणथधम (अनस्तमित्त) ब्रत गौर रत्नवय घर्मका वर्णन कर कैर-सांगरी आदिकी घृणित उत्पत्ति,
गोद, मफीस, हल्दी और कत्या भादिकी जिन्दय एव हिसामयी उत्पत्तिका विस्तारसे वर्णन
किया है । तत्परचात् मिथ्यामतोका निरूपण करते हुए लूँ कामतकी आाचार-ह्ीनता का, और
जिम-प्रतिमा का विस्तारसे वर्णन किया है ।
पदम कवि ने लूँकामत्त का कोई उल्लेख नहीं किया है और दौलतराम जोने नामोल्लेख
न करके उनके मतकी समालोचना कर जिन प्रतिमाकी सहत्ताका गंका-समाधान पूर्वक्त वर्णन
किया है । इससे ज्ञात होता है कि पदम कविके समयसे लू कामत्तका या तो प्रारम्भ ही नहीं
हुआ था, गौर यदि हो भी गया होगा, तो उसका प्रचार उनके समयसे नगण्य-सा था ।
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