सूत्रकृताङ्गसूत्र | Sutrakritanga Sutra
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
367
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्भ
पर मैं तुम्हारी हिसक-कऋर प्रकृति को दयालुता में न वदल
सका यही एक श्रर्मान है। संगम लज्जित मुख से खिसक गया,
पर वह यातनायें देकर भी उन्हे चलायमान तो न कर सका ।
वे भी उसकी असीम अ्रवज्ञाप्षो पर जरा भी गमें से हुये, प्रत्युत
समभावस्थ ही रहे ।
ऐसे उत्तम समता के योगी, सन्मार्ग दर्शक पीछे श्रनस्त
तीर्थंकर हो चुके हैं, झ्रागे भी होगे, उनकी निप्पक्ष उपकारिणी
वाणी से अ्रनन्त।नन्त लोगो ने दुराग्रह-बुराइयोंके सागरसे
पार भी पाया ।
हमारे लायक मित्र न्रिपिटकाचार्य महापण्डित राहुल
साकृत्यायनने.. महावीर-तीर्यकरके . उपदेश(सुचकृता ज़) वा
सरल हिन्दी भाषाकी वोलचालमे _्रनुवाद करनेका यथाक्षयो-
पद्म प्रयरटन क्या है, देशकालके श्रनुस।र मेलजालकी यह
कितना भ्रच्छा स्वर्णयुग है कि इसमें एक भिन्न विचारक दूसर
भिसन विचारककी घारणणा-मान्यताशोको प्पनी रा्ट्रीप-लोव
भापामे प्रस्तुत करना है, यह अ्रम्नुल्य सेवा क्तिनी गौरवपूण
चस्तु है । पहले भी कई श्रच्छे लोगोमे ऐसी ही विचारसरणी
पाई गई है । जैसे कि पाणिनि ऋषि शाकटायन ऋषिकी रीतिको
श्रपने व्याव रणमे दर्जे करते हैं, श्रौर गार्ग्य-यालव ऋषिके मतकी
बदर वरके उसे पसद वरते हैं, भर अ्रपनाते हैं । उन्होंने इसे
शिप्टाचार श्रौर ग्रन्यका गौरव भी माना है । इसी भांति यह
युग भी रांग-द्वेप मिटाकर गुर ग्रहणतापुर्वेव परस्पर मिलनेवा
युग है । न कि सीचातानी का । प्रो दिलमहम्मदने गीताकों
सालिस उदू-शायरीमे रगकर उसे दिलकी-गीता बनाया, श्रीर
लोगोंने उसे चावसे भ्रपनाया ।
श्रीमाद् राहुलने सुचहत्तागक।ा श्रमुवाद करते समय स्वा-
ध्याय-चिन्तन-मनन-निदिध्यासन पुर्वेब इसको टीवा-दूर्णी-
'माध्य-दुत्ति-अ्नुवाद भ्रादिवी भी भ्राँखें देखी हैं । यदि स्वाध्याय
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