विचार और उनका समीक्षा कार्य | Vichar Aur unka samkisha kary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डा० नगेन्द्र ने प्रस्तुत सकलन में उद्धृत “'छायावाद की परिभाषा' सीपक निवन्ध में भी फ्रायड के सिद्धान्तों के राघार पर कुछ विचार व्यक्त किये हैं, जेसे कि-- 'छायावाद को कविता प्रघानत भ्यज्ारिक है । क्योकि उसका लस्म डुग्ना है व्यक्तिगत कुण्ठाओं से शझ्रौर व्यवि्तिगत कुण्ठायें प्राय काम के चारों श्रोर केव्द्रित रहती हैं। *”* * समाज के चेतन मन पर नेतिक शझ्ातंक श्रभो इतना श्रघिक था कि इस प्रकार की स्वच्छद भावनाएं श्रभिव्यक्ति नहीं पा सकती थीं । निदान ये श्रचेतन में उतर कर वहाँ से श्रप्रत्यक्ष रूप सें व्यक्त होती रहती थीं ।' श्रागे फिर वे लिखते हैं कि “जो प्रवृत्ति प्रकृति पर मानव व्यक्तित्व का ग्रारोपण करती है वह कोई विशेष प्रवृत्ति नहीं है । वह मन की क्‌ठिति वासना हो है जो श्रवचेतन में पहुंच सुक्ष्म रूप घारण कर प्राकृतिक प्रती को के द्वारा झ्रपने को व्यक्त करती है ।' स्पष्ट है कि डा० नगेन्द्र फ़ायड के सिद्धान्तो का ही समर्थन श्रौर व्याख्यान कर रहे हैं । कितु डा० साहव फ़ायड के सिद्धान्ती के एकागिता से भी भली-भाँति परिचित हैं । इस सम्बन्ध में उन्होने 'फ्रायड श्रीर हिन्दी साहित्यिक' शीर्षक निवन्ध में स्पष्ट विचार व्यक्त किये हूं भ्रौर उनकी श्रालोचना के मुख्य श्राघार काव्यशास्त्र और रससिद्धात हीहूं। डा० नगेन्द्र के सम्बन्ध में श्रालोचको का मत है कि वे पवके फ्रायड- वादी हैं । और यहाँ तक कहा गया है कि-- पहले तो वे समन्वय की बात सोचते रहे, पर श्राज-फल के रसवादी डा० नगेन्द्र नें फ्रायड का पत्ला कसकर पकड लिया है श्रौर श्रपती नई श्रालोचनाश्रो में वे फ़ायड के मनोविज्ञान को श्रघिक्ाघिक ला त करने का श्रयत्न कर रहे हैं ।' किन्तु डा० नगेन्द्र स्वय श्रपने श्रापको फ्रायडवादी नहीं कहते । उन्होने आकाशवाणी दिल्‍ली से प्रसारित एक वार्ता में स्पष्ट घोषणा की दे कि-- |. तेरह




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