धन-धर्म की रक्षा का उपाय | Dhan Dharm Ki Raksha ka Upaay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
371 KB
कुल पष्ठ :
20
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हैं इक यू
दरिद्रता और सुसीवर्तो का तुमको जराभी ख्याल नहीं है ।
क्या तुम देश.से जुदा हो, क्या देश पुम्दारा नहीं है, क्या देश
के: दुःखी लोग देश के सम्बन्ध से तुम्हारे भाई नहीं हैं घोर
कया देश के श्रन्न जल से तुम्हारा पालन पोषण नहीं हुआ है!
नहीं भाई, यह बातें नहीं हैं। बदिक देश तुम्हारा है और तुम देश
के हों। इसलिये तुम्दारें दिलों में देश के.प्राति श्रवश्य प्रेम होना
चाहिये । ऐसा कहने से हमारा यह प्रयोजन नहीं है कि तुम '
कमीशन' एजेन्टी थोड़दों .या धनाद्यपन से *उदासीन हो
जाओ। नहीं कदापिं नहीं, ऐसा कहना तों महान् पाप है, बलिक
हमतो , यह कहते हैं ।कि तुम देश .की 'आवंश्यक्ताओं को. पूरी
करने का .बीड़ा उठाध्रो । यहां की. पैदा. की. हुईं वस्तुओं को यहां
की आश्यक्तानुप्वार रख कर. दूसरे देशवाली को . दो, .उसमें
भर पूर कमीशन लो .९्रपने धन. का -सदुपयोग करो, 'देश' के
लिये झावश्यक वस्तु बनाने का -प्रयेशन करो ऐसा करने. से
देश माईयों' को लाभ' होरगी,. तुम्दारा धन, धमे, . और जीवन
सफल,होगा :ग्ोर.तुम देश -क्रें उच्च: मनुष्यों: में समझे जाशओंगें !
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