छायावादोत्तर हिंदी काव्य : बदलते मानदंड एवं स्वरुप | Chyavadadovter Hindi Kavy : Badalte Mandand Evam Svaroop

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Book Image : छायावादोत्तर हिंदी काव्य : बदलते मानदंड एवं स्वरुप  - Chyavadadovter Hindi Kavy : Badalte Mandand Evam Svaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब् ः (6) की वहाँ 'सत्यं' और 'शिवं' भी सुन्दर के रूप में ग्रहीत हुए।”' तात्पर्य यह है कि छायावाद कवियों की दृष्टि प्रकृति-सौन्दर्य से लेकर मानव-सौन्दर्य तक को अपने में आत्मसात्‌ किये हुए हैं | छायावादी काव्य में प्रकृति को जैसा महत्व प्राप्त हुआ वैसा आदिकाल से लेकर द्विवेदी युग तक की कविताओं में कभी नहीं मिलता । इस युग में ही सर्वप्रथम प्रकृति को प्रेरणादायिनी शक्ति के रूप में देखा गया। इन कवियों के लिए प्रकृति मात्र उद्दीपन नहीं अपितु आलम्बन है। प्रकृति उन्हें एक प्रकार की शक्ति देती है तथा नये राह पर चलने के लिए मार्ग निर्देशन करती है। इस प्रकार प्रकृति उनकी प्रेरणा है, प्रकृति उनकी पूज्य है। इस प्रकार इस युग में उसे नयी दृष्टि से देखने का प्रयास किया गया। संध्या, उषा, रात्रि, चांदनी, सरिता आदि सभी प्राकृतिक उपादानों को नयी ध् अन्तर्दृष्टि से देखा गया। प्रकृति के चिर-परिचित दृश्यों के अतिरिक्त छायावादी क्रवियों ने प्रकृति की ओर भी अपनी दृष्टि दौड़ाई। प्राकृतिक खण्डचित्रों के अतिरिक्त छायावादी कवियों ने पहली बार प्रकृति को एक विराट सत्ता के रूप में देखा तथा प्राकृतिक वस्तुओं के स्थान पर समग्र प्रकृति को काव्य का विषय बनाया, और उसके “प्रकृति -प्रेम के मूल में सभ्यता से उत्पन्न सामाजिक रूद़ियों से मुक्ति और नैसर्गिक जीवन की आकांक्षा ही अधिक थी, पलायन कम ।| “ले चले मुझे बुलावा देकर, मेरे नाविक धीरे-धीरे जैसी कवितायें जगतमात्र से पलायन नहीं बल्कि 'कोलाहल की अवनी' से त्राण पाने की अभिलाषाहै।”* पंत के प्रकृति चित्रण का स्वरूप भी विकासशील रहा है। 'वीणा' में प्रकृति-चित्रण भाव प्रधान है 'पल्लव' में कल्पना प्रधान है और 'गुंजन' में विचार प्रधानता' की झलक मिलती है| न न छायावादी कवियों पर यह आरोप लगाया जाता है कि जब सम्पूर्ण देश पराधीनता से त्रस्त होकर स्वाधीनता-संघर्ष में रत था, तब छायावादी कवि राष्ट्रीय -सामाजिक समस्याओं एवं चेतनाओं से दूर आत्मगत घेरे की संकीर्ण चहारदीवारी में ही चक्कर लगा रहे थे । लेकिन यह बात सत्य से परे है । छायावादी कवियों की तमाम रचनायें इस बात की साक्षी हैं कि इन्हें राष्ट्र लोक, मानव तथा अपनी संस्कृति की गरिमा का बोध था | छायावादी कवियों की इस चेतना तथा बोध का स्पष्ट स्वरुप निराला के भारतीय जय विजय करें ', 'महाराजा शिवाजी के नाम पत्र ', “जागो फिर एक बार. जैसे जागरण गीतों तथा प्रसाद के 'हिमालय के आंगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार ' और 'हिमाद्रि-तुंग-श्रंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती' आदि गीतों में देखा जा सकता है सामाजिक विषमताओं से पीड़ित छायावादी कवियों की दृष्टि लोक मंगल की ओर भा गई फलत: उन्होने नारी, भिक्षुक, विधवा, कृषक आदि को भी अपने काव्य का विषय बनाया । सामाजिक पलललसलतननतमत पर मगर वनयालगपशशपर - निर्मला जैन - आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्यांकन, पृष्ठ 73... 7 निर्मला जैन - आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्यांकन, पृष्ठ 74 ४ धुनिक कविता शा ढ




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