दुर्वासातृप्तिस्वीकार नाटक | Durvasatriptiswikar Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
( स्थान-दु्ोसा ऋषीश्वर बा छाथस )
( झट चिचारते छुप ) झासन पर दुर्घासा ऋषि चिराजमान हैं
घोर छासपास शान्तिवर्त्सा झौर सत्यघ्त दो शिप्य खड़े दें ।
एि -«
श्हु पन्तिचत्सा-ए दाथ जोड़कर ) श्रीशुर्देव ! झाज किस
विचार में छंगे हुए हें। दमारे पाठ का समय आगया है |
सत्यन्नत-अ( घीरे से ) अरे मित्र ! -ब्डपिछुल में रदते हैं सो
रात दिन पढ़ना छी पढ़ना दे । कमी तो अझनध्याय का सी छानद् सनाने दें।
शान्तिवर्त्सी-( ईँसता हुआ ) रोकता दे।
दुवीस्ा--चत्ल [जे भी जानता हू कि तुम्हारे पाठ का समय
छागया । पर मैंने ध्याज स्वप्न में सद्दाराज दुर्योधन को देखा सो झाशा
करता हूँ दि प्याज 'उनसे मिंत्तना दोगा । गे
(नेपथय सरें झब्द )
दुवी सा-चत्स ! द्ारपर जाकर देखो कोन दे £
सवत्यघ्त-[जो झान्ञा । बाहर जा राजर दुर्योधन को देख लिंचे-
चदन करता दे कि महाराज ! छस्तिनापुर च्हे सधघीश राजा डुर्योधन
घ्याप के द्दोन के द्तिये पधारे. हें ।
सच ा-वत्स ! शीघ्र लाया 1
( राजा टुर्घोधन च्या बछषि दशिष्यस्ाइित घचेश )
क डुधाघधन-चऋषि चो- देखकर ( घ्ाप्टरी ध्याप 2 ध्यद्दों तपस्या
. की मदिमा ध्यद्धुत दे । इनको -देखते- दी सन. को ब्मत्यलत अखन्नता अत
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