वरदान | Vardan

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Vardan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ एकता का सम्बन्ध पु दोता है. द्वार पर भाँकने श्रायी तो प्रताप को ठोनों हाथों से मुख ठाँके हुए देखा | पहले तो समभदी कि इसने हँसी से मुख छिपा रखा है । पर नव उससे हाथ दृटाये तो श्ासि दीख पड़े । चॉककर वोली--जल्लू क्यों रोते हो व्ता दो।.. प्रताप ने कुछ उत्तर न दिया चरन्‌ श्रोर सिसकने लगा । विस्लन चोली--न वताओ्ोगे | क्या चाची ने कुछ कद्दा है ? चाश्ो तुम चुग नहीं दोते । हि प्रताप ने कद्दा--नहदीं विरजन माँ चहुत वीमार है । यह सुनते ही वृूनराना टोड़ी श्रौर एक साँस में सुवामा के सिरदहाने जा खड़ी हुई। देखा तो वद्द सुन हुई पड़ी है आँखें हुई हैं श्रौर लम्बी साँसें ले रही है । उसका दाथ थामकर विरजन शिभोरने लगी चची कैसा नी है ? श्रा्खें खोलों कैसा वी है परन्तु चची ने श््राँखिं न खोली । तब वद्द ताक पर से तेल उतारकर सुवामा के सिर पर धीरे-धीरे मलने लगी । उस वेचारी को सिर से महीनों से तेल डालने का श्रवसर न मिला था ठण्ढ़क पहुँची तो श्राँखें खुज् गयी । चिरजन--चची कैसा ली है कहीं टद तो नहीं दे ? सुवामा--नद्दीं वेटी बढ कहीं नहीं है । रथ में बिलकुज्त श्च्छी हूँ । मेया कहाँ है ? चिर्जन--वह तो मेरे घर हैं. बहुत रो रहे हैं | सुवामा--ठम चाश्रो उसके साथ खेलो | श्रव में बिलकुल श्रच्छी हूँ । श्रभी ये बातें हो रही थी कि का भी शुमागमन हुश्ा । उसे सुवामा से मिलने की तो बहुत टिनों से उत्कणठा थी परम्दु कोई श्रवसर न मिज्ञता था । इस समय वह साम्तना देने के वशने से श्र पहुँची | चिरजन ने श्रपनी माता को देखा तो उछल पड़ी श्रौर ताली चना-बजाकर कटने लगी--मा श्रायी मा श्रायी । दोनों खियों में शिष्टाचार की वात होने लगीं । बातों-नातों से टीपक दो




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