प्रेम प्रपञ्च | Prem Prapanch
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रु ] फ्दला मंक दे
भी याद रक््खो कि बह मंत्रीका लड़का प्रतिष्ठित और वैमव-सम्पन्न होते
हुए भी हमारी लड़कीका पति न हो सकेगा ।
यश्नोदा---तुम्हारे मनमें यह विचार कहाँते आकर भर गया है ?
माधव ०--मैं नहीं जानता था कि तुम इतनी मूखे हो गई हो !
यशोदा--मदनमभोहनने तो वचन दे दिया है कि वह विमलासे
ही विवाह करेगा ।
माघव०--वादद ! अच्छा बचन-दान है और तुम्हारा विचित्र
अनुमान है | इन बातोंसे हम प्रसन हो जायें और निश्चित हो कर
सोयें, यह कदापि नहीं हो सकता । कया तुम जानती हो कि उसने
इस अनुनय-विनय और बाक्पठुताके बदले, विमढासे कया माँगा
होगा ? देखो समझदारी और दूरदर्शिताको हाथसे न छोड़ो । ईश्ररके
यहाँ लड़कियों अपने सतीत्व और चरित्रकी पवित्रताकी उत्तरदात्री होती
हैं । जो अब्रगुण उनके सतीत्वको कछषित करेगा, उसका फ माता-
ऑको भुगतना पढ़ेगा । यह युवक तुम्हारी ऑआँखोंके सामने उसके
हृदयमें कुसेस्कारका बीज बो रहा है और उसको पाप-पूर्ण कार्य कर-
नेकी प्रेरणा कर रहा है । तुम नहीं जानतीं कि एक दिन ऐसा होगा
जब तुम अपनी बेटीको रोते देखोगी और रोनेका कारण पूछनेपर वह
उत्तर देगी कि मेरे प्रेमीने--जो मुशपर आसक्त था, मुझसे अनुराग
करता था--मुझे घोखा दिया और छोड़कर चला गया । हे ईश्वर ! अच्छा
होता यदि उसका अभाग्य यहीं तक परिमित रहता ! किन्तु नहीं, भागे
चल कर तुम फिर किसी दिन सुनोगी कि उसकी मान मय्यादाका भी
नाश हो गया और बह अप्रतिष्ठा तथा बदनामीके गहरे और अँधिरे गढ़ेमें
गिर पढ़ी है |
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