प्रेम प्रपञ्च | Prem Prapanch

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prem Prapanch by पं. रामलाल अग्निहोत्री - Pt. Ramlal Agnihotri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. रामलाल अग्निहोत्री - Pt. Ramlal Agnihotri

Add Infomation About. Pt. Ramlal Agnihotri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रु ] फ्दला मंक दे भी याद रक्‍्खो कि बह मंत्रीका लड़का प्रतिष्ठित और वैमव-सम्पन्न होते हुए भी हमारी लड़कीका पति न हो सकेगा । यश्नोदा---तुम्हारे मनमें यह विचार कहाँते आकर भर गया है ? माधव ०--मैं नहीं जानता था कि तुम इतनी मूखे हो गई हो ! यशोदा--मदनमभोहनने तो वचन दे दिया है कि वह विमलासे ही विवाह करेगा । माघव०--वादद ! अच्छा बचन-दान है और तुम्हारा विचित्र अनुमान है | इन बातोंसे हम प्रसन हो जायें और निश्चित हो कर सोयें, यह कदापि नहीं हो सकता । कया तुम जानती हो कि उसने इस अनुनय-विनय और बाक्पठुताके बदले, विमढासे कया माँगा होगा ? देखो समझदारी और दूरदर्शिताको हाथसे न छोड़ो । ईश्ररके यहाँ लड़कियों अपने सतीत्व और चरित्रकी पवित्रताकी उत्तरदात्री होती हैं । जो अब्रगुण उनके सतीत्वको कछषित करेगा, उसका फ माता- ऑको भुगतना पढ़ेगा । यह युवक तुम्हारी ऑआँखोंके सामने उसके हृदयमें कुसेस्कारका बीज बो रहा है और उसको पाप-पूर्ण कार्य कर- नेकी प्रेरणा कर रहा है । तुम नहीं जानतीं कि एक दिन ऐसा होगा जब तुम अपनी बेटीको रोते देखोगी और रोनेका कारण पूछनेपर वह उत्तर देगी कि मेरे प्रेमीने--जो मुशपर आसक्त था, मुझसे अनुराग करता था--मुझे घोखा दिया और छोड़कर चला गया । हे ईश्वर ! अच्छा होता यदि उसका अभाग्य यहीं तक परिमित रहता ! किन्तु नहीं, भागे चल कर तुम फिर किसी दिन सुनोगी कि उसकी मान मय्यादाका भी नाश हो गया और बह अप्रतिष्ठा तथा बदनामीके गहरे और अँधिरे गढ़ेमें गिर पढ़ी है |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now