प्रारंभिक अर्थशास्त्र | Prarambhik Arthsastra

Prarambhik Arthsastra by अमरनाथ अग्रवाल - Amarnath Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर्यशॉप्त्र को चिपष रे अपनी भादव्यकताओी की तृप्ति करने में कोई भी पदिनाई ने होती 1 उसे किसी प्रवार या उधोग करने नी आमश्यकंता न होती । मिल, वास्तविक जीवन में न तो थावश्यकता-पूरति के सभी मा अधिकतर सांपर्न असीमित है, भर न हो साधारण व्य्िव के पास एंसा कोई जादू है जिगते उगे सब इच्छित बस्तुए बिना फिसी परिम्ण के मिल यरें । अतएद साधारणतया आवश्यकता-पुर्ति के राभिनों की प्राप्ति के, छिए मनुष्य कौ उद्योग करना पडता है, उसमें बदले में कुछ-म-कुछ मूल्य चुकाना पता हैं, चाहे वह स्वय दे था उसके छिए कोई और मूत्य चुवापे, मा ठयोर करे । एक और विदेषया जो ध्यान देगें योग्य है, बह यह हैं कि आवर्यकता- पूत्ति के सीमित सामनों के अनेक सम्भव प्रयोग अथवा व्यवहार हूं । उन्हें भिक्न-भिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जा सकतों है, पर सब स्थानों में एव साथ नहीं । जवे किसी सीमित साधन को एक आवश्यकता की पूत्ि में छगाया जायणा, हें! भर्य आवश्यकताओं की पूर्ति में उसका प्रयोग सम्भेष ने होगा । फ्स्वहुप उन भादस्यकताओं यो, अर्थात्‌ साधन के अन्म प्रयोगी को, छोड़ना पड़ेगा । से भूमि के एक टुकडें को कई प्रदार से काम में ला सकते है, उससे कई आवश्यकताओं थी पूरति कर सकते हैं। उस पर खेती कर सकते है, दाग लगा सकते है, मकान, दुकान या स्कूछ बना सकते हू । किन्तु जब हम इनमें से किसी एक उद्देपस को पूर्ति के लिए उस भूगि का प्रयोग कर छेगें तो उसके अन्य प्रयंगी को छोड़ना पढ़ेंगा । अर्थात्‌ अन्य आवश्यकताओं की पति के लिए उसका अ्रयोग ने हो सकेगा । व्यवहार में आने वाले ढगमग सभी साधनों के साथ यह बात छांगू होती हैं । दुध को हम पी सकते हूँ, या उससे और कोई चीज तैयार कर सकते है, पर दोनों काम एक साथ सही कर सकते । इसी प्रकार दोहा, कोयणा, अन्न, समय, मतुष्य की झक्ति आदि सभी सीमित वस्तुओं और साधनों के निभिय व्यवद्वार या श्रयोग होते है। जब हम इन्हें किसी एक आाव्यकता की तप्ति- करते मे उपयोग करेगें, तो_ अन्य आव- इंवकताओं को, जो इनके प्रयोग द्वारा पूरी हो सकती है, छोड़ना पढेगा !




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