सत्यमार्ग | Satyamarg
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
484
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ रुप |
मन में कुछ शानन्द सा होता है । यह झानन्द् उसी सच्चे खुख
का भलकाव है जो दमारे आत्मा का स्वभाव है। परोपकार:
करते ये कुछ न कुछ मोह घटाया जाता है । चस जितना
मोद्द घटता है उतना हो सुख ऋलकता है। इस सच्चे सुख को
जो हमारे दी पास है हम यदि उस के झोगने का सत्य मार्ग
जान लेंबे तो दमारा यही जीवन मात्र ही खुखदाइ न हो किन्तु
परलोक का जीवन भी खुखदाई हो जावे ।
सच सुख के पाने का उपाय वास्तव में आत्मध्यान
छात्समनन आत्मभक्ति तथा परोपकार है ।
इसके लिए दम को सच्चे देव, शास्त्र, शुरू को पहचानना
चाहिये जिन को भक्ति पोठ व सेवा से हम आत्मा को जान
सके व आत्मध्यावन का पाठ सीख सक |
जिस देघ में अज्ञान नहीं व क्रोघ मान माया लोमादि
कपाय नहीं; जो स्चेज्ञ, सबे दर्शी, निष्झलंक, निष्कपाय, छत
कृत्य, स्घात्मावलस्वो, खिदनन्द सोगो व खरे खिस्ताओ से
नदित है वहीं परमात्मा सच्चा देव है । उस में जगत को
चनाने च चिगा $ ने, किसी की ध्रशंसा से खुश हो खुली करने,
किसी की निन््दा से झमलन्न दो दुः्खो करने को भावना नहीं
होती है । पसे परमात्मा को सक्ति करने से झपने आत्मा के
गुर्ो में चिश्वास चढ़ता है क्योकि हर एक आत्मा के वे दो खुश
हूं जो पक परमात्मा में दोते हू-परमात्मा में घरगट है ।
हम सात्साओं में वे पूर्ण प्रमद नहीं हैं स्योकि हम
पापपुणय कर्म के वन्घनो. से अशुद्ध हैं परमात्मा चन्घन
रहित शुद्ध है। हमें ऐसे परमात्मा को छोड़ कर
झौर किसी राग छपी संसार को चासनाओ में आासक्त देव
देवता की भक्ति पूजा न. करनी चाहिये । क्यो कि वह इमारे
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