कल्याण साख्य -2 | Kalyan Sakhya-2
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50 MB
कुल पष्ठ :
742
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सख्या २]
मन-मन्दिरमें सिया-राम
७२९
डिनटणणनययनययय्यय्सयययमययययमययमयममयमस्डयययससयययसयययससससमयन
क्या बिगडा है * केवल बिगडी है हमारी नीयत ! सम्राट
शाहजहाँके पूछनेपर एक दद्धने उसे बताया था कि तुम्हारे
बाबा अकबरके राजत्वकालमें अर्धरात्रिमे मेरे एकान्त निवास-
स्थानपर एक भूली-भटकी बहुमूल्य आसूष्णोंसहित अति
सुन्दरी सेठानीके आनेपर भी मेरे मनमें उसके प्रति
बहनके भाव थे, मानव-कर्तव्यका पूर्ण बोध था |
जहॉँगीरके समयमें मेरे भाव बदले और उसके कीमती
आसूपणोंके न लेनेपर पछतावा होने लगा, परंतु आपके राज्य-
मे आमभूषणोंके साथ-साथ उस सुन्दरीको भी छोड़ देनेके
लिये पश्चात्ताप होने ठगा है ।” यह है समयके परिवर्तनके
साथ मनुष्यकी नीयतके वदलनेका खरूप । इसीलिये
भगवानसे प्रार्थना करो--'भगवन् ! मैं वार-वार मन आपमें
लगाता हूँ पर वह लगता नहीं--मैं आपके शरणागत हूँ;
आप सुझपर कृपा करे और अपने चरणोंमे मुझ पापीको
दारण दें । भगवान् भक्तवत्सल, करणा-वरुणाल्य हैं और
निश्छल तथा निष्कपट भावसे की गयी प्रार्थनापर आदर होकर
भक्तको गोदमें उठा लेनेको आकुल होकर दौड पडते है |
सत्यभामाने द्रौपटीसे जब पूछा कि “तुमने ऐसा कौन-
सा मन्त्र या सिद्धि प्राप्त की है, जिसके फलखरूप पाँचों पति
तुम्हारे वदामे रहते है ** द्वौपदीने उत्तर दिया--'किसी
मन्त्र या सिद्धिसे नहीं वर अपनी सेवासे मैं अपने पतियों-
की प्रिय हूँ, उनकी छोटी-से-छोटी प्रत्येक सेवा मैं अपने हार्थों
करती हूँ और समस्त अतिथियोंकि सत्कारकी व्यवस्था भी
मे खर्य करती हूँ, किसी अन्यपर उसे नहीं छोडती |”
द्रौपदीने जो बातें स॒त्यमामासे कहीं थीं; वे भारतीय नारी-
के आदर्यके अनुरूप हैं । इसलिये माताओंको रासलीला
करनेका मनमें भी व्रिचार नहीं छाना चाहिये वर द्ौपदीके
उपदेशोंका पालन करना चाहिये । यही उनका धर्म है ।
मेरा कथन आपको भले ही कडुआ लगता हो परत
सत्य यही है । हमारा काम है--जनताको धर्मका सच्चा
मार्ग दिखाकर उनका कल्याण करना ।
चारों वेद तथा छह शाख्नोका चाहे कोई पण्डित भी हो;
परतु यदिं बह आचारद्दीन हो तो मृत्युकाछमें वेद और
शाख्र उसे वैंसे ही छोड देंगे जैसे पक्षी सूखे पेडको । वेवछ
इसलिये कि तुम्हारे पास गक्ति और बठ है; घर्ममार्गसे
कमी किसीको च्युत मत करो । साघुओंको खधर्मकी
रक्षा करनी चाहिये ।
मगवानते कहा है--'मेरी आज्ञा तोडकर चढोगे
तो मारे जाओगे। सुख-दु खरे कमी मत घन्रराओ, सभी
समय मन-त्रचन-कर्मसे मगवान्का ध्यान करो; वह
सदैव तुम्हारी सहायता करता रहता है । “श्रीराम जय
राम जय जय राम |?
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मन-मन्दिरमें सिया राम
( स्वयिता--स््र० लाला श्रीमगवानदीनजी )
कोटिन कुवेरन कौ कनक कनूका-समः
ताकीं चाल्यों वेद एक अछप कहानी है ।
कामचघेनु कल्पतरु चिंतामनि आदिक की;
ताको दान देखि देखि मति चकरानी है ॥
पाॉँचह मुक्ति ताकी दासी हे खवासी करें;
काठह्ट कराठ की न ता सँग विस्रानी है ।
“प्दीन” कवि जाके मन मंदिर में वास करे;
राम सौ खुराजा औ सिया सी मद्दारानी है ॥
अलननणाणाणाणयुत जि है पमेीगगणएयतए
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