कल्याण साख्य -2 | Kalyan Sakhya-2

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Kalyan Sakhya-2 by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सख्या २] मन-मन्दिरमें सिया-राम ७२९ डिनटणणनययनययय्यय्सयययमययययमययमयममयमस्डयययससयययसयययससससमयन क्या बिगडा है * केवल बिगडी है हमारी नीयत ! सम्राट शाहजहाँके पूछनेपर एक दद्धने उसे बताया था कि तुम्हारे बाबा अकबरके राजत्वकालमें अर्धरात्रिमे मेरे एकान्त निवास- स्थानपर एक भूली-भटकी बहुमूल्य आसूष्णोंसहित अति सुन्दरी सेठानीके आनेपर भी मेरे मनमें उसके प्रति बहनके भाव थे, मानव-कर्तव्यका पूर्ण बोध था | जहॉँगीरके समयमें मेरे भाव बदले और उसके कीमती आसूपणोंके न लेनेपर पछतावा होने लगा, परंतु आपके राज्य- मे आमभूषणोंके साथ-साथ उस सुन्दरीको भी छोड़ देनेके लिये पश्चात्ताप होने ठगा है ।” यह है समयके परिवर्तनके साथ मनुष्यकी नीयतके वदलनेका खरूप । इसीलिये भगवानसे प्रार्थना करो--'भगवन्‌ ! मैं वार-वार मन आपमें लगाता हूँ पर वह लगता नहीं--मैं आपके शरणागत हूँ; आप सुझपर कृपा करे और अपने चरणोंमे मुझ पापीको दारण दें । भगवान्‌ भक्तवत्सल, करणा-वरुणाल्य हैं और निश्छल तथा निष्कपट भावसे की गयी प्रार्थनापर आदर होकर भक्तको गोदमें उठा लेनेको आकुल होकर दौड पडते है | सत्यभामाने द्रौपटीसे जब पूछा कि “तुमने ऐसा कौन- सा मन्त्र या सिद्धि प्राप्त की है, जिसके फलखरूप पाँचों पति तुम्हारे वदामे रहते है ** द्वौपदीने उत्तर दिया--'किसी मन्त्र या सिद्धिसे नहीं वर अपनी सेवासे मैं अपने पतियों- की प्रिय हूँ, उनकी छोटी-से-छोटी प्रत्येक सेवा मैं अपने हार्थों करती हूँ और समस्त अतिथियोंकि सत्कारकी व्यवस्था भी मे खर्य करती हूँ, किसी अन्यपर उसे नहीं छोडती |” द्रौपदीने जो बातें स॒त्यमामासे कहीं थीं; वे भारतीय नारी- के आदर्यके अनुरूप हैं । इसलिये माताओंको रासलीला करनेका मनमें भी व्रिचार नहीं छाना चाहिये वर द्ौपदीके उपदेशोंका पालन करना चाहिये । यही उनका धर्म है । मेरा कथन आपको भले ही कडुआ लगता हो परत सत्य यही है । हमारा काम है--जनताको धर्मका सच्चा मार्ग दिखाकर उनका कल्याण करना । चारों वेद तथा छह शाख्नोका चाहे कोई पण्डित भी हो; परतु यदिं बह आचारद्दीन हो तो मृत्युकाछमें वेद और शाख्र उसे वैंसे ही छोड देंगे जैसे पक्षी सूखे पेडको । वेवछ इसलिये कि तुम्हारे पास गक्ति और बठ है; घर्ममार्गसे कमी किसीको च्युत मत करो । साघुओंको खधर्मकी रक्षा करनी चाहिये । मगवानते कहा है--'मेरी आज्ञा तोडकर चढोगे तो मारे जाओगे। सुख-दु खरे कमी मत घन्रराओ, सभी समय मन-त्रचन-कर्मसे मगवान्‌का ध्यान करो; वह सदैव तुम्हारी सहायता करता रहता है । “श्रीराम जय राम जय जय राम |? नए डक्कि,लिएएा एद<डददरूटदददटकाा मन-मन्दिरमें सिया राम ( स्वयिता--स््र० लाला श्रीमगवानदीनजी ) कोटिन कुवेरन कौ कनक कनूका-समः ताकीं चाल्यों वेद एक अछप कहानी है । कामचघेनु कल्पतरु चिंतामनि आदिक की; ताको दान देखि देखि मति चकरानी है ॥ पाॉँचह मुक्ति ताकी दासी हे खवासी करें; काठह्ट कराठ की न ता सँग विस्रानी है । “प्दीन” कवि जाके मन मंदिर में वास करे; राम सौ खुराजा औ सिया सी मद्दारानी है ॥ अलननणाणाणाणयुत जि है पमेीगगणएयतए ।<<इ:<स<डडडद< का (|)




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