समालोचना तत्त्व | Smalochna Tattv

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Smalochna Tattv  by नलिनीमोहन सान्याल - NaliniMohan Sanyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समालोचना-तत्व समालोचना-विषयक मनस्तत्व की कुछ आलोचना व्याकरण-शास्त्र वा घम-शास्त्र वा. वेदान्त-शास्त्र के सद्रश ' समालोचना ' नामक कोई घिशेष शास्त्र भारत में नहीं है। परंतु संस्छत झलंकार-शास्त्र में इस विषय की यथेष्र श्यालोचना मिलती है । भरत मुनि से लेकर मम्मट तक श्लौर मम्मट से लेकर विश्वनाथ तक मनीधियों एवं मलिनाथ इत्यादि प्रसिद्ध टीकाकारों ने काव्यों के दोष गुणों का यथेष्र विवेचन किया है । यूरुप में भी इस विषय की घालोचना ध्रस्तू के समय से होती चली घ्याई है । गत दो तीन शताब्दी से इंगलेगाड, फ्रान्स, जमनी शोर झ्रमेरिका में बड़े बढ़े समालोचक पेदा हुए हैं । झ्तएव समा- लोचना-शाख्र ्याघुनिक घा उपेक्तणीय नहीं । परन्तु हिदी में इस विषय की ध्रालोचना थोड़ी हुई है झ्रोर समालोचना-शास्त् के झ्रभाष के कारण दिंदी-साहित्य की उन्नति में बहुत बाधा पड़ रही है । जब हम किसी रचना की प्रशंसा था निन्‍न्दा करते हैं, तब हमारे मन में इस बात की ठीक-ठीक धघारणा रहदनी चाहिए कि क्यों चद्द प्रशंसा घा निदा के योग्य है । काव्य के उत्कष या




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