उत्तराखंड के पथ पर | Uttaraakhand Ke Path Par

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्२ उत्तराखंड के पथ पर गया था : “खंडा: पंच हिमालयस्य कथिता नेपाल-कर्माचलो । केदारोडथ जलंधरोधथ रुचिर: कदमीर-संज्ञोधन्तिम: ॥।'” वे पांच खंड हे--१. नेपाल २. कर्माचल ३. केदार ४. जलंधर तथा ५. काइमीर । काली नदी के पूर्व में नेपाल-खंड है, पद्चिम में कर्माचल या कुमाऊं । यह खण्ड आजकल अलमोड़ा और नेनीताल के दो जिलों में बंटा हुआ है । कर्माचल की पर्चिमी सीमा से यमुना तक कदार-खंड है, अर्थात्‌ गंगा और यमुना का सारा पनढर इसमें सम्मिलित हे । मध्यकाल में छोटे-छोटे सामंतों की ५२ गढ़ियों (राज्यों) में विभक्त होने के कारण इसे गढ़, गढ़वाल अथवा बावनी कहा जाने लगा | पुर्वकाल में देहरादून भी गढ़वाल का अंग था; लेकिन अंग्रेजों ने उसे मेरठ कमिरुनरी में डाल दिया । आजादी के बाद जब भारत का पुनगंठन हुआ तो टेहरी राज्य को उत्तर प्रदेश में मिलाकर उसका एक स्वतंत्र जिला बनाया गया | पुराने समय में जलंधर पद्चिमी हिमालय का एक बड़ा खण्ड था, जिसमें सतलज, व्यास, रावी और चुनाब, ये नदियां बहती थीं । आज उसकी सीमा बदल गई हे । वह शिमला-कांगड़ा अर्थात्‌ हिमाचल प्रदेश तक सीमित हैं । काइ्मीर पंजाब के उत्तर में हे और अपने सौंदयं के लिए सारी दुनिया में प्रसिद्ध है । हिमालय की भूमि अनेक दृष्टियों से अत्यन्त मनोरम है । उसके दिखर, उसकी उपत्यकाएं, उसकी नदियां, उसके वन, उसके प्रपात, उसके निवासी, सब अपनी विद्षेषता रखते हें। ती्थों की तो हिमालय में भरमार है । उसके पांचों खण्डों में से एक भी




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