कैवल्य शास्त्र | Kaivalya Shastra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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न झविनाशी ; परन्तु इससे उसके उत्पन्न हुई चित्त की झत्तियें
को शत फरने के लिये झनेफ जन्म ग्रदण करने पर कोई आप
नही दोता | इस प्रसग से सप्तम पादू समाप्त दोता है। अष्म पाद
में झचतार सथवा पुर्ण पुरुप के सम्भव स्सरूप का विचार है !
सये पाद में स्टि की ज्रियुणास्मिक तीन दूशाओों, जे जड़ व
नतन्य दोनों के यथाय॑ चोघ के लिये झावशयक है, के सिद्धान्त
फी व्याख्या है । दशम पाद में जीवनोहेश्य पर चिचार है ।
एकादश पाद में आदि वस्तु के ामाविक गुणों पर अचल
'घर्म का निर्माण फिया है । उसको अ्रचछता का फारण सत चस्तु
के सचल गुणा पर निमंर होना है। डादश थे ज्रयोद्श पादों में
सापेक्षक, व्यक्ति गति च सप्माजिफ धर्म का विघरणु है। चतु
दूश पाद मे सस्कार सम्पन्धी सिद्धान्त च मदुप्य फी सतत
न्यता का चिचार है । पन््द्रदचें पाद में चि्त-दुद्धि च प्रायश्वित
फा रूप दियाया है मौर सालद्चें पाद में मन्थ निर्मल दैविष्
प्रेम में विधाम फो प्राप्त होता है।
इस प्रफार से उस अगम्य का जानने फा प्रयत्न किया गया है
सौर इस छान की ट्रढ नीव पर जल धर्म का, कि जो केवल
चिवेक के जाधघार पर होने से सब जातिये झौर सब समये के
लिये एक दो है, निर्माण किया गया है । इससे जितना धर्माकाश
सखच्छ हो उतनी हो इसकी सफलता है। चस, यही प्रार्थना है कि
इस फग्चार-दौली को उद्धि दोने से यद ऐसे घम्मे के निणुंय का
कारण हो कि जिस से सब पद घाले सन्तुट हे कर प्रेम भर
आस्मिक समता से पक हो जाय) ससार फी शास्ति के हेतु दम
सब इस प्रार्थना का फरे । हम सदेव उस प्रभु का स्मरण करे
क्पॉंषि चदी भाग्यशाली हैं जो उसके चर में है।
४? राम
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