अनुव्रत - मार्च 1956 | Anuvrat - March 1956
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
474
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सामाजिक संगठन को; कौटुम्विक जीवन को
इतनी झताब्दियों तक जीवित और सबर्ल बना
रखा है। आज का समाज भावना का प्रतीक
सर रह गया है । उसके दाब्दों में कछा का
-सौन्दर्स है; प्रेरणा का सजीव रपदा नहीं । इस
दिला में भी अणुत्रत आन्दोलन अग्रसर है।
विद में शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो
सके; परस्पर सौदा की सदभावना को जगा
पृथ्वी पर खर्ग लाया जा सके; और ऐसे नवयुग
का दुर्घन हो सके जहाँ शोषण न हो; उत्पीड़न
नदी, वंचना न हो; इस दिशा में आचार्य
तुलसी की विद को अणव्रत के रूप में एक
अनुपम देन है ।
इस प्रसंग में अब और अधिक कुछ न कह
“कर एक वात और कहकर समाप्त करता हूँ ।
मानव रुचियों की तृप्ति थनिवायंहै और उसमें
“स्वाभाविक मांगों की तृप्ति भी अनिवार्य है ।
उन सखाभाविक मांगों में एक मांग कल्पना
शक्ति की मी है। कल्पना मानव के ऐसे जूते
हैं जिन्हें पहनकर बह वास्तविकता के कठोर
मागे पर चलने के योग्य होता है । कल्पना
मानव के ऐसे गर्म वस्त्र हैं; जिन्हें पहनकर
कह वास्तविकता के तीन्र झीत को सहनकर
सकता है । कत्पना उसका ऐसा शुद्गुदा बिस्तर
'है जिस पर बह जीवन की कठोर यात्रा से थक
विश्राम करता है । इसके बिना , मानव का
जीवन असहनीय दो जाती है.। यह उसके
अभावों की पूर्ति का साधन है। विश्व की
अन्तिम सव्यता के सम्बन्ध में मनजुष्य के सिद्धांत
उसकी कत्पना शक्ति के प्रकाश हैं । यह प्रकादा
सल्य ज्ञान पर॒ आधारित है । कत्पनाशील से
ही मनुष्य आविष्कार, कला और साहित्य रचना
के योग्य हुमा है। मानव की ऐसी कत्पना
“ठछित कछाओं के रूप में प्रकट होती है ।
जीवन में कठिनाइयों पर विजय पाने के
झणुब्रत )
|
अयोग्य व्यक्ति झूठ और बेरमानी का अभ्यासी
बन जाता है। पागरुपन कठिनाइयों का
सामना न कर सकने का ही परिणाम है । आज
मानव भीतिकवादी प्रयोगों के आधार-कठि
नाईयों में जा घिरा है । मानव को कठिनाईयों
फ हमारे नैतिक व चारिन्रिक पतन की जड़--.
का साहसपूरवक सामना करने की क्षमता सत्य;
अहिंसा, अत्तेयं, ब्रह्मचर्य और अपरिग्र्द के
पालित मार्ग की और संकेत करता हुआ अछुत्रत
आन्दोलन “भाज एक निर्देशक के रूप में बढ़
रहा है ।
शराब
| डा श्री राजेदवरपसाद चतुर्वेदी पी० एच० डी, एम० ए० ]
एद्राइ-ानिक तलाश पा अाहिए्धिका। |: एफ पाना जञाधधजनधणापााइ ४0 कि
यूदि आप अपने समाज की वास्तविक
स्थिति जानने के इच्छुक हैं; तो इस आशय
का एक विज्ञापन प्रकादित करा दीजिए कि
“मैं ग्रत्येक व्यक्ति की प्रत्येक समस्या का समा-
थान करता हूं । प्रत्येक व्यक्ति को मेरे सम्मुख
अपनी सबसे अधिक महत्वपूर्ण कठिनाई प्रस्तुत
करने के लिए आमन्त्रित किया जौता है ।”
आप विश्वास कीजिये आपके सम्मुख अनेक
प्रकार की समस्याएँ” उपस्थित न की जाएँगी ।
समस्या प्रस्तुत करनेवालों में महिलाओं की
संख्या अधिक होगी । , उनकी समस्याओं के
स्वरूप , विभिन्न होंगे; परन्तु उनका मूलाधार
एक ही होगा ।. वे अपने पति की नशेवाजी
से परेशान हैं; उनकी शिकायतों के नमूने इस
प्रकार होंगे-मेरे पति आधी रात के बाद ही
घर में घुसते हैं वे प्रायः नशे में चूर रहते
हैं तथा उनके होश-हवाश ठिकाने नहीं रहते
हैं, मेरे पति नशे में चूर होने के कारण प्रायः
बच्चों के _खिलौने तोड़ डालते हैं; इतना ही
नहीं वे कभी-कभी बच्चों को और अधिक पी
लेने की दशा मैं मुझे भी मार बेठते हैं। मेरे
पत्दिव अपनी सारी कमाई दारूवाले के यहां
१७६
फेंक आते हैं; खाने के नाम खाने को दौड़ते
हैं। मेरे दो-चार जेवरों के कौड़े भी कर चुके
हैं. «आदि ।
यदि सरकार सदाचार सम्बन्धी व्यवस्था
करने लगे; दाराब पीने को अपराध लार्पित कर
दे और सदाचार के नियमों का उल्लंघन करने
चालों को गिरफ्तार किया जाने छगे तो आप
विंस्वास कीजिए, गिरफ्तार होनेवाले अपराधियों
में ८५ प्रतिशत संख्या शराबियों की दोगी ।
इसका एक कारण है, भाजकल शराब पीनेवालों
की संख्या भत्यघिक बढ़ गई है, कोई चौकिया
पीते हैं; कोई गम गत करने के छिए उसका
इस्तेमाल करते हैं । कोई दवा के रूप में अपनी
तन्दुरुसी ठीक रखने के लिए उसकी खुराक
चढ़ाते हैं, कोई दुनियां की नजरों में फॉ्ड
अथवा नई रोशनीवाछे बनने के लिए उसकी
चुसकी गाते रहते हैं । -« “इत्यादि ।
शराब के बढ़ते हुए रिवाज के वयारे में
भाप केवल इसी एक बात से अन्दाज छगा
सकते हैं कि आजकर गिरजाघर जानेवाछे बहुत
से लोग तथा अनेक पादरी भी; शराव पीते हैं
विवाद भादि के अवसरों पर शराब के दौर
[ १ माचं; १६४६
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