द्वैताद्वैत प्रकाश | Dwaitadwaita Prakash

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Book Image : द्वैताद्वैत प्रकाश  - Dwaitadwaita Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) उ०--देखो, बेदादिशास्त्रों में कहीं तो भदट्ेत का ही वर्णन है घ्मेर कहीं द्रंतका दही, इसका समाधान यदद है कि जद्दां झदट्टेत ही में श्रुतियां कुकी हैं चहां तो उपाधिकों सर्वथा मिथ्या समक कर सब जगदको एक ब्रह्मनूप ही मानाहे श्रार जहां ट्रेव दी कद रद्दी हैं बद्दांउपाधिकों लेकर ट्रेत घतलाया है परन्तु उपाधिकें मिथ्या दोनेसे अट्वेतपत्त ही वास्तविक दे ट्रत नहीं, बयोंकि भाविद्यारूप उपाधिके नष्ट होनेके पश्चाव न्रह्मके सिवाय कोई जोव पदार्थ पृथक नददीं 'रददता है । श्रह्म की विद्या श्र विद्या ये दो शक्तियां हें परन्तु ये दोनों ही घ्रह्मरूपा हैं, झविद्या उससे भिन्न कोई वस्तु नहीं है ढक जिसके नाश से घ्रह्म का भी नाश समझा जानें यह मलिनतलमधाना हे सौर पाया छुद्धसलमधाना है । इन दोनोंमें भापसभें इतना ही भेद है। जेसे छाया वा अन्धकार ये देखनेमें तो सचेसे दिखाई देतेहें परन्तु भ्रसल में छुक् भी नहीं, एक केवल तेंज का अभावमात्र ही हैं, ऐसी ही खमरूपा ऑवि- या श्र माया है, मायाका लक्षण यद है कि जो बिना हुए ही दीखने लगे और ज्ञानके पश्चाद न मतीत दोवे वही माया है, जेसे मतिविम्व वा अन्घकार-सो ही भा ०में लिखादे कि आते5्य यत्पतीयेत न प्रतीयेत चात्मानि । तडिययादात्मनो मायां यथाभासों यथा तमः ॥ १ ॥ अप श्रतियों में परस्पर कोई विरोध नहीं, अन्वेथा “माया 5विद्या च स्वयमेव भवाति' कुदबननलसिटीलाणय विदा या ण्णएडक हज नि, चकऊे कि सदन १--जो प्रकृति को घह्म की शक्ति न साना तो




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