जैन ज्योतिर्लोक | Jain Jyotirlok

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जैन ज्योतिर्लोक  - Jain Jyotirlok

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मोतीचंद जैन सर्राफ़ - Motichand Jain Sarraf

Add Infomation AboutMotichand Jain Sarraf

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दो शब्द प्रस्तुत 'जेन ज्योतिरलॉक' नामक पुस्तक समयोचित एवं सार गभित है। विभिन्न प्रन्थसागर का मग्थन करके ग्रह नक्षत्रों को व्यवस्था सम्बन्धी प्रकरण तथा भुलोक एवं श्रक़त्रिम चेत्यालयों का सुन्दररीत्या विवरण संकलित किया गया है । पुस्तक के श्राद्योपांत पटन से वैज्ञानिकों की खोज की वास्तविकता का श्रन्दाज भली प्रकार लगाया जा सकता है कि वे लोग चन्द्रयात्रा में कहां तक सफली भूत हुये हैं तथा उनका श्रन्वेषगग कितने अ्रदों में सत्य है । पुस्तक के लेखक श्री मोतीचन्दजी सराफ सुपुत्र श्री श्रमोलकचन्दजी सराफ मध्यप्रदेश के सुप्रसिद्ध शहर इन्दौर के निकट सनावद नगर के निवासी हैं । वेराग्यपूर्ण भावनाएं होने के कारण २० वर्ष को श्रायु में ही श्राजीवन ब्रह्मचर्थ ब्रत घारण कर लिया | प्रभी जब २ वर्ष पुवं परम विदुषी श्राधिका पु० श्री ज्ञानमती माताजी ने ससंघ सनावद चावुर्मास किया था तभी से उनसे प्रभावित होकर श्रध्ययन करते हुए परम पू० स्व८ आचार्य श्री शिवसागरजी के संघ में गत २ वर्षों से रहकर जान प्राप्ति में दननचित है । गत वर्ष शास्त्री प्रथम वर्ष में गोम्मट्सार एवं ब्याकरणादि को परीक्षा पास करके इस वर्ष शास्त्री द्वितीय वर्षे में जेनेन्द्र महावत्ति, श्रष्टसहस्त्री, राजवातिक श्रादि विषयों का पठन पू० माताजी से ही कर रहे है । पू० गर्श्ों के सानिध्य में रहकर शीघ्र ही योग्य विद्वान एवं लेखक बन जावेगे । ऐसे होनहार नवयुवक ही समाज एवं धरम के स्तम्भ है । ग्रन्त में परम उपकारी महान्‌ साधु्रों [मनि, श्रारधिकाश्रों ) के प्रति नत मस्तक होकर त्रिकाल नमोस्तु करता हुमा लेखक को हादिक बधाई देता हू पं० इन्द्रलाल शास्त्री ३५ दिसम्बर १९६९ विद्यालंकार, जयपुर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now