भगवान महावीर की एक हजार आठ सुक्तिया | Bhagawan Mahaveer Ki ek hajar aatha Suktiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ संसार समुद्र मे धर्म ही दीप है । श्द धर्म दीपक की तरह अज्ञान अन्धकार को दूर करते वाला है । १€ धर्म रूपी तालाब में ब्रह्मचयं रूप घाट है। २० धर्म का सुल विनय है । २१ इस मनुष्य लोक में धर्माराधन के लिए मनुष्य ही समर्थ है । र्२ घर्म रूपी घुरा के अंगीकार कर लेने पर धन से क्या ? रे जो धर्म का. आचरण कर के परभव को जाता है वह सुखी होता है । न सर आधघरण मे कठिनाई वाला फल में सुन्दर ऐसे धर्म का तू आचरण कर ।




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