अलंकार रत्न | Alankaar Ratna

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Alankaar Ratna by व्रजरत्नदास - Vrajratandas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about व्रजरत्नदास - Vrajratandas

Add Infomation AboutVrajratandas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ५ ) साथ दी कविता करने के लिए कवियों को किन साधनों की आओवइयकता है, यह विचारणीय है । दंडी ने लिखा है-- दी नेसर्गिकी च प्रतिभा श्रत॑ च वह निमंलप्‌ 'असं दश्वामियोगोडस्या: कारणं काव्यसंपद्: !। का किसी ने प्रतिभा ही को साघन माना हैं, पर कोरी प्रतिमा बिना पठन पाठन तथा श्रभ्यास के किस काम की । निरक्षरभट् क्या लिख सकते हैं, बहुत हुभ्रा कुछ ऊट्पटांग कजली, चनेनी वगैरह बना डाछेंगे | दंडी ने जो लिखा है, वही बहुत ठीक है । स्वमावतः ईदवरघदत्त प्रतिभा बीज रूप में सुख्य साधन श्रवदष्य है पर झ्नेक शास्त्रों का दध्ययन उससे कम श्रावइ्यक नहीं है । सांसारिक झनुभव भी, जो पयटनादि से प्रास होता है, काफी होना चाहिए । इन सबके होते हुए काव्य रचना का अभ्यास करना चाहिए । यह सब तभी तक आवश्यक हैं जब तक कवि अपने उत्तरदायित्व को पूणणरूपेण समझता है । उसे जानना चाहिए, कि उसके पद तथा पदांश सूक्तियों के समान मानव समाज के पथ प्रदशन के काम आवेंगे । कवि प्रशाचक्षु होता है, वह अनंत विश्व में व्यास ईदवरीय संदेशों को सानव समाज के सामने उनके हिंताथे अपनी भाषा में उपस्थित करता है । यदि वह यह सब काय सफलतापूर्वक न क्र सका तो वह झ्पने पद से च्युत हो जाता है । काव्य की अनेक परिमाषाएँ अनेक अ्याचार्यों ने गढ़ी हैं और उनमें विशेष जोर इस बात पर डाला गया है कि काव्य का शरीर जब शब्दों से बना है तो उसकी श्रात्मा क्‍या है । इसी आत्मा-को लेकर परिभाषाओं में खूब तक वितक हुए श्र अनेक पक्ष बन गए । काव्य में शब्द और अथ दोनों के होने का उल्लेख पहिछे पहल भामह ने किया है-- शब्दार्थों सहितो काव्यमू । इसके बाद आनेवाले दंडी महाराज ने शब्दाथ से काव्य-शरीर के निर्माण का श्र अलंकारों -से उसे भूषित करने का उल्लेख किया है--




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now